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________________ ७६१ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ पली मायानुं बीजी स्थितिगतनी प्रथम किहिन दल, तेने प्रथम स्थितिगत करी अंतरमुहूर्त पर्यंत वेदे, तेमध्ये शेष माननुं दल जे रघु हतुं, तेने समयोन बे आवलिकायें गुणसंक्रमें करी अंतरमुहर्त लगें मायाने विषे संक्रमावे, बेहले समयें तो सर्व संक्रमे करी संक्रमावे, एटले माननो दय थाय अने मायानो पण प्रथम किहिदल वेदतां वेदतां समयाधिक श्रावलिमात्र रहे, ते पनी अनंतर समयें पागली बीजी किहिना दलने प्रथम स्थितिगत करी वेदे, ते ज्यांसुधी समयाधिक श्रावलिकामात्र शेष रहे त्यांसुधी वेदे. ते षबी अनंतर समयने विषे बीजी स्थितिगत रहेलु एवं त्रीजी किट्टिनुं दलिक तेने आकर्षीने प्रथम स्थितिगत करीने वेदे. एम पूर्वली पेरें सर्व मायानी किहिनां दल वेदतो वेदतो, बेहली किहिनां दल प्रथम स्थितिगत करी वेदतां जेवारें समयाधिक श्रावलिकामात्र शेष रहे, तेवारें मायानो बंध, उदय अने उदीरणा, ए त्रणे साथेंज विछेद थाय, मात्र समयोन बे आवलिनु बांध्युं दल सत्तायें रां बे. बाकी सर्व संज्वलनलोजमध्ये देपव्यु बे. तेवार पनी संज्वलन लोजनी उपरली स्थितिनी प्रथम किहिन दल, आकर्षी प्रथम स्थितिगत करी, तेने अंतरमुहर्त वेदेतिहाँ शेष रह्यं समयोन बेश्रावलिमात्र, संज्वलन मायानुं दल, तेने अंतरमुहूर्त लगें गुणसंक्रमे करी लोजनेविषे संक्रमावतो अंतरमुहूर्त्तने लेहले समयें सर्व संक्रमें करी संक्रमावे, तेवारें संज्वलन लोजनी प्रथम किटिनुं दल पण समयाधिक श्रावलिमात्र रहे..तेवार पठी अनंतर समयें संज्वलन लोजनी उपरली बीजी स्थितिनी बीजी किट्टिनुं दल खेंचीने प्रथम स्थितिगत करी वेदे, ते वेदतो वेदतो श्रागली त्रीजी किहिनां दलने ग्रहण करीने तेनी सूक्ष्म सूक्ष्म किहि करे, ते पण त्यां लगें करें, ज्यां लगे बीजी संज्वलन लोजनी किहिन दल जे प्रथम स्थितिगत कस्खु जे तेनी समयाधिक श्रावलिमात्र शेष रहे, त्यां लगे करे, ते समयेंज संज्वलन लोननो बंध विद थाय, तथा बादर कषायनो उदय अने उदीरणा पण विछेद थाय, श्रने अनिवृत्ति गुणस्थानकनो काल पण विछेद थाय. ए त्रणेनो साथेंज विद थाय. तेने श्रागले समयें लोजनी सूक्ष्म किदिनुं दल उपरली बीजी स्थितिमध्येथी आकर्षीने तेने प्रथम स्थितिगत करी वेदे, तेने सूक्ष्मसंपराय कहीये. पूर्वे जे त्रीजी किट्टिनी शेष श्रावलिकानी बेहली किहि रही, ते सर्व वेदाती परप्रकृतिमध्ये स्तिबुकसंक्रमे करी संक्रमावे, एटले लोजनी प्रथम किहिनी शेष थावलिका, ते बीजी किटिना दलमध्ये संक्रमावे, अने बीजी किहिनी शेष श्रावलिका, त्रीजी किहिना दलमध्ये संक्रमावी वेदे. हवे लोजनी सूक्ष्म किहिन दल अने पूर्व समयोन बे श्रावलिनुं बांध्यु दल, तेने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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