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________________ पश्य सप्ततिकानामा षष्ट कर्मग्रंथ. ६ देशोपशमना, निझत्ति, निकाचनानो व्यवछेद करे: तिहां प्रथम समयथी दर्शनमोहर नीयत्रिकनी स्थितिसत्तानो घात करतो करतो सहस्रगमे स्थितिखंमें गये थके पांकी जेवारें असंझी पंचेंडियनी स्थितिसत्ता समान स्थिति रहे.तेवार पठी वली पण तेटलांज स्थितिखंमनां सहस्र गये थके चौरिंजियनी स्थिति समान सत्ता रहे.वली पण तेटलांज स्थितिखंगनां सहस्त्र गये थके तेंजियनी स्थिति समान सत्ता रहे. वली तेटलांज स्थि. तिखंडना सहस्र गये थके बैंजियनी स्थिति समान सत्ता रहे, वली पण तेटलां स्थितिखंडनां सहस्र गये थके पथ्योपमना असंख्यातमा नाग प्रमाण दर्शनत्रिकनी स्थितिनी सत्ता रहे, तेवार पड़ी ते त्रणे दर्शनमोहनीयनो पण प्रत्येके एकेक संख्यातमो नाग मूकीने बाकीनी स्थिति सर्व खपावे, तेवार पबी वली पण बाकी मूकेला संख्यातमा नागनो एक संख्यातमो नाग मूकीने बाकी सर्व स्थितिनो घात करे. ए रीतें बाकी रहेला नागनो संख्यातमो नाग मूकी, मूकी, शेष सर्व स्थितिनो घात करतो, करतो स्थितिघातनां घणां सहस्र अतिक्रमे, तेवार पड़ी मिथ्यात्वना असं. ख्यात नागने खंडे अने मिश्र तथा सम्यक्त्वना तो संख्यात नागने खंडे, ते पळी एम घणा स्थितिखंड गये थके जेवारें मिथ्यात्वनुं दल श्रावलिकामात्र रह्यं अने मिश्र तथा सम्यक्त्व, ए बेहुनुं दल तो पट्योपमना असंख्यातमा नाग प्रमाण रहे. हवे ए स्थितिखंगना दलने खंडवानो प्रत्येक विधि कहीयें बैयें. तिहां खंमन करेला एवां मिथ्यात्वनां दल तेने मिश्र,तथा सम्यक्त्व, ए बेहुमध्ये प्रक्षेप करे अने मिश्रनां दलमात्र सम्यक्त्वमध्येज प्रदेपे अने सम्यक्त्वनां दल सम्यक्त्वनी पोतानी हेग्ली स्थितिमध्ये प्रक्षेपे, ते पडी जे मिथ्यात्व दलिक श्रावलिकामात्र रह्यु, ते पण स्तिबुकसंक्रमें करीसम्यक्त्वमध्ये संक्रमावे, एटले मिथ्यात्व क्षीण थाय, तेवार पड़ी मिश्रना तथा सम्यक्त्वना असंख्याता जाग करी तेने खंडें शेष एक नाग राखे. वली तेना पण असंख्याता नाग करे, तेमध्येंथी एक जाग राखी बाकी सर्वने खंडे, एम करतां करतां केटलाएक स्थितिखंक गये थके, मिश्रमोहनीय एक श्रावलिकामात्र रहे, तेवारें सम्यक्त्वमोहनीयनी स्थितिसत्ता, श्राठ वर्ष प्रमाणनी रहे ते वेलायें निश्चयनयने मते सर्व विघ्न टल्यां माटे एने दर्शनमोहनीयनो कपक कहीये. तेवार पबी वली सम्यक्त्वना स्थितिखंमने अंतरमुहर्त्त प्रमाण उकेरे, तेनुं दल उदयसमयथी आरंजीने सघली स्थितिसत्ता, समय समय संक्रमावे . तेमध्ये पण उदयसमय सर्वस्तोक सक्रमावे. तेथकी बीजे समय असंख्यातगुणो, तेथकीत्रीजे समय असंख्यातगुणो, एम बागले बागले समये असंख्यातगुणो संक्रमावतां, संक्रमावतां, ते गुणश्रेणीना माथा खगें जाणवू. ते पनी उपर तो विशेषहीन विशेषहीन ज्यां लगें स्थि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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