SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 878
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ G५३ जाग राखवा, तेने कट्टि कहीये. ते किट्टिकरणाऱ्याने बेहले समयें समकालें अप्रत्याख्यान ने प्रत्याख्यानी, ए वे लोन उपशमे छाने ते समज संज्वलना लोजनो पण बंध विछेद था. छाने बादर संज्वलन लोजना उदय, उदीरणानो व्यवच्छेद थाय. निवृत्तिबादर गुणवाणानो पण व्यवच्छेद थाय. एम नवमे गुणठाणे सातथी ainla पच्ची पर्यंत मोहनीयनी प्रकृति उपशांत पामे ॥ इति ॥ ७९ ॥ ॥ हवे दशमे गुणठाणे जे प्रकृति उपशांत पामीयें, ते कहे ॥ सत्तावीसं सुहुमे, अठावीसं च मोद पयडीजे ॥ वसंत वीरागे, जवसंता हुंति नायवा ॥ ८० ॥ अर्थ- सत्तावीसंमे के० ते पटी प्रत्याख्यान ने प्रत्याख्यान, ए बेहुलोसमकालें उपशम थये थके सूक्ष्मसंपरायगुणठाणे सत्तावीश प्रकृति उपशांत थाय. डावी संचमोहपयमी के तेवार पछी संज्वलनो लोन उपशमे थके हा वीश मोहनीयनी प्रकृति, जवसंतवीरागे के० उपशांतवीतराग नामे श्रीश्रारमे गुठाणे वसंता तिनाय वा के० उपशांत होय. एरीतें ज्ञातव्या इति एवं जाणवुं ॥ ६०॥८० एम नवमाने बेहले समयें प्रत्याख्यानी ने प्रत्याख्यानी लोजनी बे प्रकृति उपशमे थके सूक्ष्मसंपराय गुणठाणे सत्तावीश मोहनीयनी प्रकृति उपशांत पामीयें, ते सूक्ष्मसंपराय गुणठाणानो काल, अंतरमुहूर्त्त प्रमाण बे तेने विषे पेठो थको जीव, संज्वलनलोजनी उपरली स्थितिमध्येंथी केटलीएक किट्टि आकर्षीने तेनी प्रथमस्थिति सूक्ष्मसंपरा श्रद्धा जेटली करीने वेदे. सूक्ष्म किट्टि कस्युं जे दलिक ने समय की वे श्रावलि बांध्युं जे दल, ते उपशमावे, चरम समयें संज्वलनो लोन उपशांत होय, तेहीज समयें ज्ञानावरण पांच अंतराय पांच, दर्शनावरणीय चार, उच्चैर्गोत्र छाने यशःकीर्त्ति, ए शोल प्रकृतिनो बंध, व्यवच्छेद करे, तेवार पछी बीजे समयें उपशांत कषाय थाय. तिहां मोहनीयनी अहावीश प्रकृति उपशांत याय. ते उपशांत कषायवंतथको जीव, जघन्यथी तो एक समय रहे अने उत्कृष्टो अंतरमुहूर्त्त पर्यंत रहे, उपरांत अवश्य पडे, ते तिहांथी पकवाना बे प्रकार बे. एक जवक्षयें पडे बीजो का पडे. तिहां जेनुं आयु पूर्ण थाय, तेवारें ते मनुष्यजवने कयें मरण पामीने अनुत्तर विमानें देवता याय. तिहां प्रथमसमयेंज बंध संक्रमणादिक वे करण तथा उदय प्रवर्त्तावे, ते पाघरो अगीयारमा गुणगणाथी चोथे गुठाणे आवे. वचला गुणगणानो तेने स्पर्श थाय नहीं. तथा औपशमिक सम्यक्त्वश्री पीने ते समय वेदकसम्यकदृष्टि थाय. तथा जे जीव, काल दयें अगीधारमा गुणगणानो अंतरमुहूर्त्त काल पूर्ण जोगवीने श्रागल चढवाने जावें तिहांथी पाठो Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy