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________________ ८४८ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ पण स्थितिघातादिक पाँच पदार्थ तेमज पूर्वली पेरेंज प्रवर्त्ते ॥ इति समुच्चयार्थः ॥७८॥ ॥ दवे निवृत्तिवादर गुणठाणे उपशमश्रेणिवालाने मोहनीयकर्मनी पूर्वनी सातथकी रंजीने पच्चीस पर्यंत प्रकृति उपशम पामे, तेनुं स्वरूप देखाडे बे. ॥ सत्त नवय पनरस, सोलस प्रहार सेव इगुवीसा ॥ गादि चवीसा, पणवीसा बायरे जाण ॥ ७९ ॥ अर्थ- सत्त नवयपनरस के अंतरकरण कीधे थके सात प्रकृति उपशांत होय, ते पठी नपुंसकवेद उपशमे थके आनो उपशांत थाय, ते पछी स्त्रीवेद उपशमे थके नवनो उपशांत याय. ते पी हास्यादिषट्क उपशमे थके पंदरनो उपशांत थाय. ते पछी सोलसहार सेवइगुवीसा के० पुरुषवेदनो बधोदय उपशमे थके शोलनो उपशांत थाय, ते पी प्रत्याख्यानी ने प्रत्याख्यानी, ए वे क्रोध समकालें उपशमे थके अढारनो उपशांत थाय. ते पढी संज्वलनक्रोधने उपशमे उगणीशनो उपशांत याय. एगा हिडुचनवीसा ho ते पी प्रत्याख्यान ने प्रत्याख्यान, ए वे मानने समकालें उपशमावे के एकवीरानो उपशांत थाय. ते पछी संज्वलन मानने उपशमाववे बावीशनो उपशांत थाय. ते पी प्रत्याख्यान तथा प्रत्याख्यान, ए बेहु मायाने समकालें उपशमाad करी चोवीश प्रकृतिनो उपशांत थाय. ते पढी संज्वलनी मायाने उपशमाववे करी पणवीसा के० पच्चीश प्रकृतिनो उपशांत बायरेजाए के० श्रनिवृत्तिबादरगुणठाणे उपशमित प्रकृति जाणवी ॥ ७९ ॥ हवे ते निवृत्तिकरण श्रद्धाना संख्याता जाग गये थके चारित्रमोहनीयनी एकवीश प्रकृतिनुं अंतरकरण करे. तिदां चार संज्वलन कषायमांहेलो जे कषाय उदय प्राप्त होय ते कषायाने त्रण वेदमध्यें पण जे वेद उदय प्राप्त होय, ते वेद, ए बेतु प्रकृतिनी प्रथम स्थिति थापणा उदय काल प्रमाणनी होय, ते बेहु टालीने तथा बाकी उगणीश प्रकृति जेनो उदय नथी, तेनी प्रथम स्थिति श्रावली मात्र होय. तिहां पोताना उदयकालना प्रमाणनुं श्ररूपबहुत्व कही यें बैयें. त्रण वेद मध्यें स्त्रीवेद ने नपुंसकवेदनो उदयकाल थोडो होय, अने स्वस्थानमां परस्पर तुल्य होय, तेथी पुरुषवेदनो उदयकाल संख्यातगुणो जावो. तेथी संज्वलना क्रोधनो उदयकाल विशेषाधिक जाणवो. तेथी संज्वलना माननो उदयकाल विशेषाधिक, तेथी संज्वलनी मायानो उदयकाल विशेषाधिक, तेथी संज्वलना लोजनो उदयकाल विशेषाधिक. तिहां संज्वलन क्रोधोदयें करी उपशमश्रेणी श्रारंने, तेने ज्यां लगें अप्रत्याख्यानीयो ने प्रत्याख्यानी यो, एबे क्रोध उपशमे नहीं, त्यां लगें संज्वलना क्रोधनो उदय होय. एमज संज्वलनमानोदयें जे श्रेणी आरंजे तेने ज्यां लगें प्रत्याख्यानी अने प्रत्याख्यानी मान, उपशमे नहीं, त्यां लगें संज्व Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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