________________
G१४
सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ ॥ श्रथ सत्तास्थानान्याह ॥ हवे गुणगणे मोहनीयकर्मनां सत्तास्थानक कहे . ॥
तिन्नेगे एगेगं, तिगमीसे पंच चसु तिग पुवे ॥
कारबायरंमिज, सुहुमो चतिनि उवसंते ॥ ५॥ ' अर्थ-तिन्नेगे के एक मिथ्यात्वगुणगणे त्रण सत्तास्थानक होय, तिहां जे त्रण पुंज करी मिथ्यात्वे जाय, तेने अहावीशनी सत्ता, तेमध्ये थी सम्यक्त्व पुंज उवेल्या पली सत्तावीशनी सत्ता, मिश्रपुंज नवेल्या पली अथवा अनादि मिथ्यात्वीने बबीशनी सत्ता जाणवी. एनी नावना सर्व पूर्वे मोहनीयनां सत्तास्थानक सामान्य विचारवाने प्रस्तावें विस्तारें नावी , तेमाटें श्रहींयां नथी जावता. तथा एगेगं के एक साखादने एकज थहावीशनुं सत्तास्थानक होय, जेनणी ए गुणगणुंत्रण पुंज उतां सम्यक्त्व वमतांज होय, तेमाटें. तथा तिगमीसे के मिश्रगुणगाणे त्रण सत्तास्थानक होय. तिहां त्रिपुंजीने अहावीशनु, सम्यक्त्व उवेलें सत्तावीशनुं तथा अनंतानुबंधीश्रा विसंयोज्या पली जे पमतो मिथें आवे, तेने चोवीशनुं सत्तास्थानक जाणवू. तथा चोथे पांचमे, बछे अने सातमे, ए चउसु के चार गुणगणे प्रत्येके पंच के पांच पांच सत्तास्थानक होय, तिहां त्रण पुंज उतां श्रहावीशनु, अनंतानुबंधीथा विसंयोज्ये चोवीशनु, तेमध्येथी मिथ्यात्व दय गये त्रेवीशन, तेमांथी मिश्र दयें बावीशर्नु, तेमांधी सम्यक्त्व क्षये एकवीशर्नु, ए सत्तास्थानक दायिक सम्यदृष्टिने होय. तथा तिगपुवे के अपूर्वकरण गुणगणे त्रण सत्तास्थानक होय, तिहां दायिक सम्यक्हष्टिने दपकश्रेणी अथवा उपशमश्रेणीयें एकवीशनुं सत्तास्थानक तथा औपशमिक सम्यक्त्वे उपशमश्रेणीयें अहावीश अने चोवीशनुं सत्तास्थानक होय, तथा श्कारबायरंमिज के बादर संपरायें अगीआर सत्तानां स्थानक होय. तिहां अहावीश अने चोवीश उपशमश्रेणीनी अपेक्षायें अने एकवीशनी सत्ता, उपशमश्रेणीये दायिक सम्यदृष्टिने होय, अथवा दपक श्रेणीये पण ज्यांसुधी थाप कषायनो दय नथी कस्यो, तिहां लगें एकवीशनी सत्ता होय, तेवार पली श्राप कषायना ये तेरनी सत्ता,तेमांथी नपुंसकवेद क्षयें बारनी सत्ता, स्त्रीवेद दयें अगीधारनी सत्ता, दास्य षट्कने दयें पांचनी सत्ता, पुरुषवेद दयें चारनी सत्ता, संज्वलनक्रोध दयेंत्रणनी सत्ता, संज्वलनमान दयें बेनी सत्ता, संज्वलनमाया दयें एकनी सत्ता होय. तथा सुहुमोचन के सूक्ष्म संपराय गुणगणे चार सत्तास्थानक होय. तिहां अहावीश, चोवीश, उपशमश्रेणीनी अपेक्षायें तथा एकवीशन दायिक सम्यकदृष्टिने उपशमश्रेणिनी अपेक्षायें अने एक प्रकृतिनुं सत्तास्थानक रूपक श्रेणीनी अपेक्षायें जाणवू तथा तिनिउवसंते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org