SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 834
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ GOL चोवीशी इ. तथा वैक्रिय मिश्रकाययोगें मिथ्यात्वें चार, देशविर तियें आठ ने प्रमत् आठ, एवं वीश चोवीशी थ. तथा औदारिक मिश्रयोगें मिथ्यात्वें चार श्रने साखादने चार, एवं आठ चोवीशी थाय. तथा कार्मणयोगें पण मिथ्यात्वें चार ने साखा - दने चार, एवं आठ चोवीशी थाय. एम सर्व मली चोराशी चोवीशी नांगानी थाय. तेने चोवीशे गुणतां (२०१६) जांगा थाय. ते पूर्वोक्त नव योग साथै गुणेला (११३८५) जांगा साथै मेलवतां ( १३४०१ ) जांगा थया. दवे वैक्रियमिश्र ने साखादने तथा चोथे गुणठाणे कार्मणयोगें वर्त्तताने विशेष बे. तेजी तेना जांगा जूदा कही देखाडे बे. वैक्रियमिश्रयोगें साखादने वर्त्तताने नपुंसकवेदनो उदय न होय, जेनणी वैक्रियमिश्रयोगी नपुंसकवेदीने नारकी प्रमुखांदे साखादने वर्त्ततां उपजवं नथी तेजणी वैक्रियमिश्रयोगें जे चार चोवीशी उदय जांगानी बे, ते मध्येंथी नपुंसकवेदथी उत्पन्न थयेला आठ व जांगा टले. बाकी शोल शोल जांगा रहे माटें चार चोवीशीने वामे चार षोडशक जांगा सास्वादने वैक्रियमिश्रयोगी ने होय. तथा अविरति सम्यकदृष्टि वैक्रियमिश्र तथा कार्मणयोगी, "ए बेहुने स्त्रीवेदनो उदय न होय जेजणी वैक्रियकाययोगी अविरति सम्यक्दृष्टि जीव, स्त्रीवेदमांदे न उपजे, ते माटें चोथे गुणठाणे ए बेहु योगें वर्त्तताने घाव आठ चोवीशीने गमे aa षोडश जांगा होय. अहींयां केवल स्त्रीवेदना विकल्पथी उपजेला आठ sa जांगा, चोवीशी चोवीशी मांहेथी काढीयें. ए टीकाकारनुं मत अवलंबीने क अन्यथा चूर्णिमांदे तो कदाचित् स्त्रीवेदीमांहे पण अवतरे, एम पण कयुं बे. तेनो पाठ "कावि हुवे सुवि वेवि मी सगस्स. "" तथा प्रमत्तसाधुने आहारक तथा आहारकमिश्र, ए वे योगें वर्त्ततां स्त्रीवेदनो उदय न होय, जेजणी थाहारक मिश्रयोग चौद पूर्वधर पुरुषनेज होय, स्त्रीने तो चौद पूर्वनुं जवं निषेध्युं वे जेजणी सूत्रे कह्युं बे के " तुहागारवबहुला, चलिंदिया डुब्बला - धी ॥ अश्वसेस कायणा, नूअवार्ड अ नो हीणं ॥ १ ॥ नूतवाद के० दृष्टिवाद बारमुं अंग, ते स्त्रीने न जणाववुं, जेजणी स्त्रीजाति खनावें तोबडी होय बे तेमाटें "गर्व घोकरे, विद्या जीरवी न शके. इंद्रिय चंचल होय, बुद्धि उबी होय, ते माटे ए अतिशय पाठ जणी स्त्रीने निषेध्युं बे, ते दृष्टिवादमांदे चोथे अधिकारें पूर्व बे माटे पूर्व या विना स्त्री आहारकशरीर न करे, ते माटे प्रमत्त अप्रमत्त गुणवाणे प्रत्येक एकेका योगें उदय जांगानी आठ आठ चोवीशी मांहेथी स्त्रीवेदना त्रीजा जागना व जांगा कामतां शेष शोल षोमशक जांगा होय. १०२ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy