SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 824
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ जएए अहावीश, गणत्रीश अने त्रीश, ए उदयें ए३-जए ए बेबे सत्तास्थानक खेतां बार नांगा थाय. ते नेलतां बेंतालीश सत्तास्थानक त्रीशने बंधे थाय. तथा एकत्रीश बांधनारो जिननाम तथा आहारकहिक सहित बांधे, तेवारें तेने एकज व्याणुनी सत्ता होय, तथा एकने बंधे श्राप सत्तास्थानक होय. तिहां ए३-ए-नए-1, ए चार उपशमश्रेणीनी अपेक्षायें तथा Go-ए-७६-७५-ए चार दपकश्रेणीनी अपेक्षायें होय. तथा बंधने अनावे पण एज आठ सत्तास्थानक होय, परंतु एटटुं विशेष जे प्रथमनां चार सत्तास्थानक अगीआरमे गुणगणे आगली तेर प्रकृतिना दय कस्या पली क्षीणमोहने लेवा. एम सर्व मली पर्याप्ता संझीपंचेंजियने (२७) सत्तास्थानक होय , अने जो अव्य मनने संबंधे केवलीने पण सन्नी कहींयें, तो तेना वली बबीश सत्तास्थानक मेलवतां (२३४) सत्तास्थानक, संझीपंचेंपिय पर्याप्तानां थाय ॥४॥ ॥ श्रथ गुणस्थानान्यधिकृत्याह ॥ हवे आठ कर्मना बंधोदय सत्तास्थानकना नांगा, चौद गुणगणा श्राश्रयीने कहे .॥ नाणं तराय ति विदम, वि दससु दो हुँति दोसु गणेसु ॥ मिनासाणे बीए, नव चन पण नव य संतंसा ॥४३॥ अर्थ-मिथ्यात्वथी मामीने दशमा सूक्ष्मसंपराय गुणगणा सुधीना दससु के० दशे गुणगणाने विषे नाणंतराय के ज्ञानावरणीय अने अंतराय, ए बेहु कर्मनो तिविहमवि के त्रिविध एटले पंचविध बंध, पंचविध उदय, अने पंचविध सत्ता, ए नांगो होय. तेवार पड़ी दोसुगणेसु के उपशांतमोह अने क्षीणमोह, ए बे गुणगणे बंधने अनावें दोहुँति के मुविध एटले पांचनो उदय अने पांचनी सत्ता होय, अने तेवार पड़ी तो उदय अने सत्ता पण न होय. हवे बीए के बीजु दर्शनावरणीय कर्म तेनो मिछासाणे के मिथ्यात्व अने सास्वादन गुणगणे नव के नवविध बंध, चउपण के० चतुर्विध अथवा पंचविध उदय श्रने नवयसंतंसा के० नवविध सत्ता होय. ए बे गुण. गणे थीणबीत्रिकनुं नियमाबंध होय माटें नवविध बंध कह्यो. अहीं बे नांगा थाय. एक नवविध बंध, चतुर्विध उदय अने नवविध सत्ता. बीजो नवविध बंध, पंचविध उदय अने नवविध सत्ता. ए बे नांगा होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥४३॥ मिस्सा नियट्टी, बचनपण नवय संत कम्मंसा ॥ चन बंधतिगे चन पण, नवंस उसु जुअल बस्संता॥४४॥ अर्थ-मिस्साइनियट्टी के मिश्रगुणगणाथी मामीने निवृत्तिकरण नामे श्रापमुं गुणगणुं बे, तेना पहेला नाग लगें, श्रीणहीत्रिकनो बंध टल्यो माटें बच्चउपणनव. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy