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________________ संग्रहणीसूत्र. श्रानूषणनो जार लागे नही, तेम अनियोगीक देवोने पण तथाविध कर्मोदयथकी चालवाने विषे रति बे, माटे स्वस्वनावे वहेता विमानोने तले ए पण वहेता रहे. ए पांचे ज्योतिषीनां विमानोना चलावनार देवो ते सरखा चोथे चोथे नागे चारे दिशिए जूदा जूदा रूपे होय ते कहे . प्रथम पुरोय के पूर्व दिशाए सीहा के सिंहने रूपे होय, अने दाहिणो के दक्षिण दिशाए हवि के हाथीने रूपे होय, तथा पछिम के पश्चिम दिशाए वसहा के वृषनने रूपे होय, अने उत्तर के उत्तर दिशाए हया के अश्वने रूपे होय, कमसा के० ए अनुक्रमे विमानवाहक जाणवा.॥५॥ ॥हवे ए सर्व ज्योतिषिउमां अधिक शजिवंत चंद्रमा डे माटे चंडमानो परिवार कहेजे.॥ गद अहासी नकत्त ॥ अडवीसं तार कोडि कोमीणं ॥ ग सहि सहस्स नवसय ॥ पणदत्तरि एग ससि सिन्नं ॥ ५ ॥ । अर्थ- मंगलादिक ग्रह अठासी के अव्याशी बे, अने अनिचित प्रमुख नकत्त के नक्षत्र ते अडवीसं के अहावीश ,श्रने डासहिसहस्स के बगसह हजार, तथा नवसय के नवसें ने पणहत्तरि के पंच्चोतेर एटली कोमीकोमीणं के कोडाकोडी तार के तारा एटले बासह हजार कोडाकोडी नवसे कोडाकोमी अने पंच्चोतेर कोडा कोमी एटला तारानी संख्या. ए सर्व एगससि के एक चंडमानो सिन्नं के० सैन्य एटले परिवार जाणवो ॥ ५ ॥ ___ अहींयां शिष्य पूजे जे के, मनुष्यक्षेत्र तो पिस्तालीश लाख योजन बे, अने ता. रानी संख्या वधारे कहो बो; माटे एटला क्षेत्रमा समावेश न थाय, तो ए वातनो संजव केम थाय ? ए आशंका गुरु आगली गाथाए टाले . कोडा कोमी सन्नं ॥ तरंतु मन्नंति खित्त थोवतया ॥ केई अन्नेनस्से ॥ हंगुल माणेण ताराणं॥ एए॥ अर्थ- अहींयां बे मत जे. केक आचार्य कोडीकोडी संझातर कहेतां नामांतर कहे बे. जेम वीशने पण कोडी कहीए, एटले कोमाकोडी केहेतां कोटी एबुंज नामांतर मन्नंति के माने जे. कारणके खित्त के मनुष्यदेवनी नूमि थोव के थोडी बे. तया के तेमाटे माने . वली केश्यन्ने के अन्य वली कोईक आचार्य ते प्रमाणांगुलने ठेकाणे उस्सहंगुलमाणेण के उत्सेधांगुलने प्रमाणे ताराणं के तारानां विमान कहे . एम करतां प्रमाणांगुल देत्रमा उत्सेधांगुलनां विमान समार जाय. केमके विशेषणवति ग्रंथमां श्रीजिननगणि क्षमाश्रमणे एहज उत्तर दीधा ले. वली " नगपुढविविमाणा मिणसुपमणं गुसेणंच ” ए पाठ प्रायिक बे. क्यांक विघटे पण . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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