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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ अर्थ-अहींआ प्रथम गाथायें बंध, उदय अने सत्तानां स्थानक कहे , अने बीजी गाथायें तेना स्वामी कहे , माटें बे गाथानो अर्थ नेलो जोमीयें, एटलेपणपुग के पांच बंधस्थानक, अने बे उदयस्थानक, पणगं के पांच सत्तास्थानक, एना सत्तेवश्रपड़तासामी के सात अपर्याप्ता जीवनेद, ते एना खामी जाणवा. तथा पणचउप णगं के पांच बंधस्थानक, चार उदयस्थानक, अने पांच सत्तास्थानक, तेना स्वामी सुहुमाय के० सूदम एकेंछिय पर्याप्ता जाणवा, तथा पणगाहवं तितिमेव के त्रणे पांच पांच स्थानक जाणवां एटले पांच बंधस्थानक, पांच उदयस्थानक अने पांच सत्तास्थानकना स्वामी होय, ते कोण होय? तोके-बायराचेव के बादर एकेंघिय पर्याप्ता एना स्वामी होय, तथा पणछप्पणगं के० पांच बंधस्थानक, ब जदयस्थानक अने पांच सत्तास्थानक, एना स्वामी विगलिं दियाउँतिनिउ के बेंजिय, तेंज्यि अने चौरिंजिय, ए त्रणे विकलेंज्यि पर्याप्ता जाणवा. तथा बचप्पणगं के बंधस्थानक, उदयस्था. नक अने पांच सत्तास्थानक, एना खामी असन्नीथ के असंझी पंचेंजिय पर्याप्ता जीव जाणवा. तहय के तेमज अहदसगंति के पाठ बंधस्थानक, थाउ उदयस्थानक अने दश सत्तास्थानक, एना स्वामी सन्नीथ के संझी पंचेंजिय पर्याप्ता जाणवा ॥ इति गाथाध्यादरार्थः॥४१॥४॥ हवे विस्तारें अर्थ लखीयें बैयें. अपर्याता सूक्ष्मादिक सात जीवनेद, तेने देव, नरकगति प्रायोग्य बंध न होय, तेमाटें थहावीश, एकत्रीश अने एक, ए त्रण बंध. स्थानक विना त्रेवीश, पच्चीश, बबीश, उंगणत्रीश, अने त्रीश, ए पांच बंधस्थानक तिर्यंच अने मनुष्य प्रायोग्यज होय. तिहां एकेका अपर्याप्ताने विषे (१३५१७ ) बंध नांगा उपजे, तथा ए सात जीवन्नेदमाहेला अपर्याप्ता सूदम अने बादर एकेंजिय, ए बे जीवन्नेदने विषे एकवीश अने चोवीश, ए बे उदयस्थानक होय, तिहां एकवीशने उदयें सर्व अशुल पद नणी एकज नांगो होय. तथा चोवीशने उदयें प्रत्येक अने साधारणना विकल्पं बे नांगा होय. एम बेहुना मली एकेका जीवनेदें त्रण त्रण नांगा होय. अने शेष पांच अपर्याप्ताना जीवन्नेदें एकवीश अने बीश, ए वे बे उदयस्थानक प्रत्येकें होय. अहींां बबीशना उदयमांहे साधारणनो उदय नथी, माटें एकेका उदयें एकेक नांगोज उपजे, तेथी बन्ने उदयना बे बे नांगा एकेका जीवनेदें होय, तथा सन्नीथा अपर्याप्तामां बे तिर्यंच पंचेंजियना अने बे मनुष्यना, एम चार नांगा प्रत्येकें होय. ए सात अपर्याप्ता जीवन्नेदें प्रत्येकें बाणु, अध्याशी, ब्याशी, एंशी अने अहोत्तेर, ए पांच पांच सत्तास्थानक होय. अहींयां तिर्यंचगति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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