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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ JUI वीश, बावीश अने एकवीरा, ए व सत्तास्थानक होय. तिहां ए सत्तर प्रकृतिनुं बंधस्थानक त्रीजे अने चोथे गुणगाणे होय, तिहां ढ़, सात, आठ छाने नव, ए चार उदय स्थानक सम्यकदृष्टिने होय, तिहां बनुं उदयस्थानक क्षायिक तथा श्रपशमिक सम्यक्टष्टिने होय. तिहां क्षायिक सम्यकूदृष्टिने एकवीश प्रकृतिनुं सत्तास्थानक होय, जे अनंतानुबंधी चार तथा दर्शनमोहनीय त्रण, ए सात प्रकृतिने दयें कायिक सम्यक्त्व होय बे तेमायें तथा औपशमिक सम्यकदृष्टिने प्रथम ग्रंथि दीपशमिक पामतां तथा उपशमश्रेणिये पण जेणे अनंतानुबंधी श्रा उपशमाव्या होय, तेने धावनुं सत्तास्थानक होय, अने जे अनंतानुबंधीचा विसंयोजीने श्रेणि आरं तेने चोवीश प्रकृतिनुं सत्तास्थानक होय. एम बे सत्तानां स्थानक, उपशमसम्यकूद ष्टिने होय. एटले सत्तरने बंधे अने बने उदयें सर्व मली २८-२४२१ - ए त्रण सत्तास्थानक थयां. मिश्रदृष्टिने सात, आठ घने नव, ए त्रण उदयें अहावीश, सत्तावीश, अने चोवीश, एत्रण सत्तास्थानक होय. तिहां जे अहावीशनी सत्तावालो मिश्रगुणठाएं पविजे तेने अहावीशनी सत्ता होय, अने जेणे मिथ्यात्वी थकां सम्यक्त्व उवेल्युं, अने मिश्रपणं हजी उवेलवा मांड्यं नयी ते सम्यकूत्वज उवेलीने मिथ्यात्वनी निवर्त्तिने फरी परिणामवशें मिलें यावे, तेने सत्तावीशनुं सत्तास्थानक होय, तथा जे सम्य दृष्टि तां अनंतानुबंधी या विसंयोजीने तथाविध परिणामने वशें मिश्रे यावे, तेने चोवीशनी सत्ता होय. ए चोवीशनी सत्ता, चारे गतिने विषे पामीयें, जे माटें चारे गतिना सम्यकदृष्टि अनंतानुबंधिवानी विसंयोजना करे, ए विषे कम्मपडिमध्यें एम कयुं बे, के “चटगश्था पत्ता, तिन्नि विसंजोयणवा विसंयोजंति ॥ करणेहिं तिहिसहिया, पंतरकरणं उवसमोवइति” चार गतिना पर्याप्ता जीव, एक सम्यकदृष्टि, बीजा देशविरति, त्रीजा सर्वविरति, ए त्रणे अनंतानुबंधी विसंयोजना करे, ते वली परिणामने वरों मि पण यावे, तेथी ए नांगो चारे गति मध्यें पामीयें. तथा चोथे गुणठाणे सत्तरने बंधें, सातने उदयें, श्रधावीश, चोवीश, त्रेवीश, बीवी ने एकवीरा, ए पांच सत्तानां स्थानक होय. तिहां श्रद्यावीशनुं औपशमिक तथा वेदक सम्यक्रष्टिने होय, ने अनंतानुबंधिच्या विसंयोज्या पठी चोवीशनुं सत्तास्थानक पण ए बेहुने दोय, तथा मिथ्यात्वने दयें त्रेवीशनुं सत्तास्थानक ने मिथ्यात्व तथा मिश्र, ए बेना दयें बावीश प्रकृतिनुं सचास्थानक, ए बे, वेदक्सम्यक्रदृष्टि, नेज होय, ते केमके ? अनंतानुबंधी चार, तथा मिथ्यात्व अने मिश्र, ए ब प्रकृति Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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