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________________ ४ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ श्रयैषामेव बंधस्थानानां मध्ये कियंत्युदयस्थानानीत्याह ॥ हवे एज बंधस्थान कमां कयां कयां बंधस्थानकें केटलां केटलां उदयस्थानक होय, ते कहे . दस बावीसे नव इग, वीसे सत्ताइ उदय कम्मंसा ॥ गश्त्र नव सत्तरसे, तेरं पंचाइ अहेव ॥१७॥ अर्थ-दसवावीसेसत्ताश्उदयकम्मंसा के "छाविंशति बंधके सप्तादीनि दशपर्यंतानि चत्वारि उदयस्थानानि नवंति" बावीश प्रकृतिने बंधे सातथी मामीने दशपर्यंत एटले सात, श्राप,नव अने दश,ए चार उदयस्थानक होय. तिहां प्रथम सातनुं उदयस्थानक देखाडे बे. एक मिथ्यात्व, बीजो हास्य, त्रीजो रति, अथवा ए बेने स्थानकें शोक अने अरति पण होय, चोथो त्रणवेद मांहेलो एक वेद, पांचमो एक अप्रत्याख्यानी कषाय, को एक प्रत्याख्यानीयो कषाय, सातमो एक संज्वलनकषाय, ए सात प्रकृतिनो उदय बावीशना बंधक मिथ्यादृष्टिने निश्चे होय. तिहां नांगा चोवीश थाय, ते देखाडे बे. क्रोध, मान, माया अने लोन, ए चारे उदय विरोधी , ते जणी क्रोधादिकने उदयें मानादिकनो उदय न होय, परंतु क्रोधने उदयें तेना हेग्ला सघला क्रोधनोज उदय होय. तिहां अनंता-बंधीआना एक क्रोधने उदयें बीजा अप्रत्याख्यानादिक चारे जातिना क्रोधनो उदय साथेंज होय, अने अप्रत्याख्यानीश्रा क्रोधने उदयें बीजा प्रत्याख्यानादिक त्रणे जातिना क्रोधनो उदय सोयेज होय, तथा प्रत्याख्यानीया क्रोधने उदयें बे जातिना क्रोधनो उदय होय, अने संज्वलन क्रोधने उदयें एकनोज उदय होय, तेमाटें अहींयां अप्रत्याख्यानीथा क्रोधने उदयें त्रणे क्रोधनो उदय होय. तेम मानने उदयें, पण त्रणे माननो उदय होय, अने मायाने उदयें पण त्रणे मायानो उदय होय, अने लोनने उदय पण त्रणे लोजनो उदय जाणवो. ए क्रोध, मान, माया, अने लोजना चार नांगा स्त्रीवेदना उदय साथें गणवा. वली स्त्रीवेदने स्थानकें पुरुषवेदनो उदय होय, तेवारें ए चार नांगा पुरुषवेदने विषे पण पामी, अने ए चार नांगा नपुंसकवेदने उदय पण पामीयें. एम सर्व मली बार जांगा हास्य अने रतिने उदये जाणवा. तेमज वली हास्य अने रतिने स्थान शौक थने अरतिने उदयें पण बार नांगा गणीये. तेवारें चोवीश नांगा थाय. अथवा एक मिथ्यात्व सातने उदयें लहीयें, तथा हास्यादिक एक युगल साथै पुरुषवेदें एक नांगो तथा शोकादि युगल साथें एक नांगो, एम बे नांगा पुरुषवेदें थाय. तेमज स्त्रीवेद साथे पण बे नांगा थाय, अने नपुंसकवेद साथे पण बे जांगा थाय. एवं उ जांगा क्रोधे थया, अने क्रोधने स्थानकें मान लहीयें, तेवा, पण उ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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