SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 741
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१६ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ पहोली ने ते दिशायें राखीये, तेवारें चार राज पहोलपणे अने दीर्घपणे थाय, श्रने सात राज्य जाजेरुं जंचपणे एवो लोकनो अर्डखम थाय, अथवा प्रसनामी थकी दक्षणदिशिना अधोलोकनो खंम, ते नीचें त्रण राज पहोलो बे, अने पडी प्रदेशे प्रदेशें घटतो उपरें एक प्रदेश सांकमो बे, अने उंचो सात राज जाजेरो बे. तेने उपामीने त्रस नामीने उत्तर दिशियें विपरीतपणे जोमीयें, एटले हेग्लनुं पहोलपj ते उपर श्राणीयें, अने उपर सांकमो , ते नीचे लावी मूकीयें, एटले अधोलोक सात राज जाजेरो उंचो श्रने चार राज पहोलपणे सर्वत्र सरखो थाय. हवे अवलोक ऊर्ध्व मामलने श्राकारें बे. तिहांत्रसनामिथी बाहेरनु एक पाशानुं अर्ड,बच्चेथी बेदीने जे पाशाये मध्य त्रण राज पहोर्बु , ते पाशें एक प्रादेशिक तिर्बा नाग उंचा, नीचा जोमीयें, तेवारे त्रण राज लांबो, पहोलो अने किंचिन्न्यून सात राज ऊंचो एवो ऊर्ध्वलोकनो घन थाय, एटले अवलोकें त्रस नामी थकी दक्षणदिशिनो खंग बे राज पहोलो श्रने किचिन्न्यून सात राज उचो तेमांहे ब्रह्म देवलोकना मध्यथकी हेलो श्रने उपरलो खंग करीने त्रस नामीने उत्तर पासें विपरीतपणे थापीयें, एटले पहोलपणुं हेवल करीयें, अने सांकमापणुं वच्चें ब्रह्म देवलोके आणीने थापीयें. एम जेवारे नीचें उपर थापीयें, तेवारें ऊर्वलोक त्रण राज पहोलो अने किंचिन्न्यून सात राज उंचो, सर्वत्र थाय. एवो ऊर्ध्वलोकनो घन थाय. ते किहांएक थोडं अधिकुं उडं होय, तेने पोतानी बुद्धियें अधिकुं उडं मांहे नेलीने सरखं करीये. तेवार पली लोकनुं उपरतुं अर्ड उपामीने अधोलोकने संवर्तिने दक्षणपाशें जोडीयें, एटले सात राज पहोलो, सात राज लांबो अने सात राज ऊंचो, एम समचतुरस्त्र घन लोक थाय. अहीं अधोलोकना सात राज जाजेरा . तेम ऊर्ध्व लोकना सात राज माठेरा बे, ते मेलवतां पूर्ण थाय. __एना एक राज लांबा, पहोला तथा एक राज उंचा, एवा खांमुआ करीयें, तेवारें त्रणसें ने तेंतालीश खंमुक थाय. ए सर्व स्थूल व्यवहारनयें कडं, जे नणी लोक तो वृताकारें बे अने ए घन तो समचतुरस्त्र थयु माटें एने वृताकारें करवाने अर्थे त्रणसें तेंतालीश खंगुकने उंगणीश गुणा करीने बावीश नागें हरीयें, तेवानवृताकारें लांबो, पहोलो थाय, पण ए नय कांशएक ऊणाने पण पूर्ण कहे , ते माटें व्यवहार थकी सर्व ठेकाणे सात राजनोज घन कह्यो बे, तेथी खांमुश्रा न थाय तो पण न गणवो. अहीं एक राज ते स्वयंजुरमण समुअनी पूर्वदिशिनी वेदिका थकी पश्चिम दिशिनी वेदि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy