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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ . ६७५ ग्रहणयोग्य वर्गणानुं क्षेत्र, संख्यांश हीन जाडं. ते थकी वली वैक्रिय वर्गणा क्षेत्र प्रसंख्यांश दीन जावं. एम सघले असंख्यांश हीन अवगाहना क्षेत्र यतुं जत्य. हवे गाथानो अक्षरार्थ लखीयें ढैयें. इगडुगलुगाइ के० एक, ठिक, अणुकादिक, यहीं श्रणु शब्दने प्रत्येके संबंध बे एटले परमाणु जाणवो. तिहां एकाणुकादिक, यणुकादिक. एटले एक मां बे, तिहां एकाणुकादिक कहेवु. बे आयमांबे, माटें छणुकादिक कहे . अर्थात् एक परमाणुनी, द्विपरमाणुनी, वर्गणा, यदि शब्द थकी त्रण परमाणुनी, चार परमाणुनी, पांच परमाणुनी एम वधतां वधतां जा के० यावत् क्यां सुधी कहेनुं, ते कहे बे. अजवगुणियाखंधा के० अजव्यथी अनंतगुणा परमाणुयें वधती उपलद की सिद्धना जीवने अनंतमे जागें परमाणुयें वधता स्कंधनी वग्गणान के० वर्गणा ते प्रथम उरल के दारिक शरीरने ग्रहण करवाने उचिछा के० उचित एटले योग्य होय. एवी अनंती वर्गणा जाणवी. तह के० ते थकी एकादि परमाणुयें वधती एवी अनंती वर्गणा ते अगहणं तिरिया के० औदारिक शरीरने, अग्रहण प्रायोग्य होय, ग्रहणांतरिता एटले ग्रहण वर्गणा वर्गणांतरित होय ॥ इत्यक्षरार्थः॥७५॥ एमेव विवादा, र तेय नासाणु पाए मए कम्मे ॥ सुहुमा कमावगादो, ऊपंगुल असंखंसो ॥ ७६ ॥ अर्थ-एमेव के० एणी पेरें बीजी विजन के० वैक्रिय शरीरने ग्रहण योग्य वर्गणा, त्रीजी आहार के थाहारक ग्रहण योग्य वर्गणा, चोथी तेा के० तैजस ग्रहण योग्य वर्गणा, पांचमी जसाणुपाण के० जाषा प्रायोग्य वर्गणा, बडी श्वासोश्वास ग्रहण योग्य वर्गणा, सातमी मए के० मनोग्रहण योग्य वर्गणा, श्रवमी कम्मे के० कार्मण ग्रहण योग्य वर्गणा, ए आठ वर्गणा जाणवी. ए आठे वर्गणानुं कमावगाहो के० अनुक्रमे अवकाश क्षेत्र ते एकेक थकी सुदुमा के० सूक्ष्म सूक्ष्म होय, एटले हीन हीन होय. एटले औदारिक ग्रहण योग्य वर्गणाना अवगाहना क्षेत्र थकी दारक ग्रहण योग्य, वर्गणानुं श्रवगाहना क्षेत्र सूक्ष्म, ते थकी वली वैक्रिय ग्रहण योग्य वर्गणानुं अवगाहना क्षेत्र सूक्ष्म, एम सर्व वर्गणानुं श्रवगाहना क्षेत्र, नुक्रमें एकेक थकी ऊणूण के० ऊएं ऊएं होय. अने गुल संखंसो के० ए यावेनुं अवगाहना क्षेत्र, अंगुलने असंख्यातमे जागें होय, अनुक्रमें एकेकथी एकेकनी अवगाहना ऊणी कुणी एटले न्हानी न्हानी होय, केम के पुल द्रव्यने विषे जेम घणा पुजल परमाणुनो समुदाय मले, तेम सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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