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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ ६५१ चढता चढता परमाणु तेना समुदाय समुदायनी एकेकी वर्गणा करता जश्ये, ते अजव्य जीवथी अनंत गुणी अने सिहजीवना अनंतमा नाग परिमाण निरंतर वर्गणानो समुदाय ते प्रथम स्पर्द्धक होय. जे लणी प्रथम स्पर्ककनी उत्कृष्टी वर्गणायें जे रसाविजाग डे ते थकी एक, बे, त्रण, संख्याता तथा असंख्याता अविनाग पलीछेद वधता परमाणु न पामीयें. परंतु सर्व जीवं थकी अनंतगुणे रसावित्नागें वधता परमाणु तेनो समुदाय ते बीजा स्पर्ककनी प्रथम वर्गणा जाणवी. वली तेथी एक रसावित्नागें वधती बीजी वर्गणा. एम वली एकेका रसाविनागें वधती वधती जेवारें अन्नव्य जीवथी अनंतगुणी वर्गणानो समुदाय थाय, तेवारे बीजो स्पर्कक होय. ते बीजा स्पर्ककनी उत्कृष्ट वर्गणाथी वली सर्व जीव थकी अनंतगुणा रसावित्नागें वधता परमाणुनो समुदाय ते त्रीजा स्पर्ककनी प्रथम वर्गणा. ते थकी वली एक रसाविनागें वधता परमाणुना समुदायनी बीजी वर्गणा. एम वली पण अजव्य जीव थकी अनंतगुणी वर्गणानो समुदाय थाय, तेवारें त्रीजो स्पर्डक थाय, एवा अजव्य जीव थकी अनंतगुणा स्पर्ड के एक अनुनाग एटले रसनुं स्थानक होय. अहीं सघला स्पर्डकने अांतरे सर्व जीवथी अनंतगुणी शून्य वर्गणा उठे. ते हवे सूक्ष्म अग्निकायना जीवथी तेनो कायस्थिति काल असंख्यात गुणो . ते थकी पण असंख्यात गुणां अनुनाग स्थानक थाय. तिहां एक कंमक मात्र अनंत नाग वृषिस्थानक. (१) पली बीजो वली असंख्यात नाग वृद्धिस्थानक. (२) एम कंझक मात्र स्थानकने अांतरें, अांतरे, एकेक असंख्यात नाग वृकिस्थानक खेतां कंमक वर्ग प्रमाण स्थानकें संख्यात नाग वृझिस्थानक. (३) कंमक घन प्रमाण स्थानकें संख्यात गुण वृद्धिस्थानक. (४) कंमक वर्ग वर्ग प्रमाण स्थानके असंख्यात गुण वृद्धिस्थानक. (५) कंडक घन घन प्रमाण स्थानके अनंत गुण वृद्धिस्थानक. (६) तेवे कंमकें षट्स्थान वृद्धिपणे होय. श्रहीयां मूढमतिने समजाववा नणी कल्पनायें सर्व जीवथी अनंत गुणाने एकसो लेखवीयें, ते एकादिके वधती बनव्य थकी अनंत गुणाने पांच लेखवीयें. एटले एकसो उपर एकादिथी पांच पर्यंत प्रथम स्पर्कक, पडी बसें उपर एकादिथी पांच पर्यंत बीजो स्पर्डक, त्रणसे उपर एकादिथी पांच पर्यंत त्रीजो स्पर्कक, चारसे उपर एकादिथी पांच पर्यंत चोथो स्पर्धक, एनी स्थापना सविस्तर कर्म पयमीथी जाणवी. __ अहींयां रागादिकने वश थको जीव, सिडने अनंतमे जागे अने अजव्य थकी अनंतगुणा एटला परमाणुयें निष्पन्न कर्मस्कंधना दलिया जूदा जूदा समय, समय ग्रहण करे . ते दलीयाने विषे परमाणु दीव कषाय विशेष थकी सर्व जीव थकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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