________________
शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
६१०
अर्थ-सहा विलहुबंधे के० स्वमतें सर्व बंधयोग्य एकसो ने वीश प्रकृतिना जघन्य स्थितिबंधने विषे वाद के० जघन्य अवाधाकाल निन्नमुटु के अंतर मुहूर्त्तनो जावो, एटले जघन्य स्थितियें बांध्युं जे कर्म ते अंतर मुहूर्त्तसुधी पोतानो विपाक देखाडे नहीं, ते अबाधाकालें हीन निषेककाल कहीयें. हवे यहींयां जे विशेष बे ते देखाडे बे. जिवे व के० उत्कृष्ट श्रायुनी स्थितिने विषे जघन्य अबाधाकाल पण होय, ने जघन्य स्थितिना श्रायुमां उत्कृष्ट प्रबाधाकाल पण होय. तथा उत्कृष्ट श्रवखें उत्कृष्ट बाधाकाल होय, तथा जघन्य श्रायुष्यें जघन्य बाधाकाल होय. एम आयुः कर्म विषे बाधाकालनी च जंगी थाय, केम के अंतर मुहूर्त्त - शेष आयुयें पण मनुष्य तथा तिर्यंच परजवायु, तेत्रीश सागरोपमनुं बांधे ठे. अने पूर्व कोमीना त्रीजा जाग शेष आयुयें पण परजवायु जघन्य बांधे बे. तथा पूर्व कोटीनो त्रीजो जाग शेष रहे थके तेत्रीश सागरोपमायु बांधे बे; तथा अंतरमुहूर्त्त शेषं खुलक वायु पण बांधे. एम स्वमतें सर्व प्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध कह्यो.
हवे मतांतरें कड़े बे. केश्सुराजसमजिए के० कोइ एक श्राचार्य जिननामकर्मनो जघन्य स्थितिबंध जघन्य देवायु जेटलो होय एम कहे बे. एटले दश हजार वर्षनो जघन्य स्थितिबंध आठमा गुणगणाना बहा जागने प्रांतें चरमबंध एटलो होय, तथा दश हजार वर्ष नरकायु जोगवी पण जिन थाय, तेनी अपेक्षायें पण ए जघन्यबंध माने बे. अहीं तत्व केवलिगम्य बे. तथा मंतमुदुबिंतियाहारं के० श्राहारक शरीर ने हारक अंगोपांग, ए वे प्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध आठमा पठाणाने प्रांतें चरमबंधें अंतरमुहूर्त्त प्रमाण होय, एम माने बे. ते जाणीयें ढैयें के, श्रागमिक मतें अप्रमत्त गुणठाणे अंतरमुहूर्त्तनो बंध पंचाशक मध्यें प्रायश्चित्तविधि पंचाशकनी बेतालीशमी गाथायें कयुं बे, ते अपेक्षायें कहेता हशे, पण ते ने उत्कृष्ट बंधमान पण हशे ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३७ ॥
॥ दवे कुल्लकजवनुं मान कहीयें ढैयें. ॥
सत्तरस समदिया किर, इगाणु पाएं मिहुंति खुड्डु नवा ॥ सगतीस सय तिदुत्तर, पाणू पु इग्ग मुहुत्तमि ॥ ४० ॥
अर्थ-सत्तरससम हि या किर के० सत्तर जव जाजेरा तेरसें पंचाणु अंश, अढारमा जावना अधिक नि इगाणुपाएं मिहुंतिखड्ड नवा के० एक श्वासोश्वासमांहे होय, क्षुल्लक व एटले निगोदियाना न्हाना जव जाणवा. एवा सगतीससयतिदुत्तर के० साडत्रीशसें ने तहोंत्तेर पाणु के० श्वासोश्वास पुण के० वली इग्गमुहूत्तंमि के० एक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org