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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ՄԱՍ जमणा दाथथी लेइने दीवुदहिसुइक्किक के० द्वीप अने समुद्रने विषे एकेको सरिसखिविध के० सरिसव मूकतो जाय, ते जे द्वीपें तथा जे समुझें पढमे के० पहेला पालाना संरसव निठिए के० निठे एटले खाली थाय. पढमं तदं तं चित्रा के वली जे द्वीपें, अथवा जे समुद्र, ते प्रथम अनवस्थित पालो गलो थाय, तेटलोज जांबो, पहोलो एटले वचमांना द्वीप अने समुद्र सर्व तेमध्यें समावे एटलो लांबो, पहोलो तेमज एक हजार योजन जंडो, सामाश्राव योजन उंचो, बीजो पालो कपीने तेने पुणजरिए के० वली पण शिखासहित सरसवें करीने जरीयें, तंम्मितदखीणे के० वली ते पालाने पण तेमज उपाडीने कोइ देवता तेमज वली आगला एकेक द्वीपें अने समुद्र एकेक सरसव मूकतो जाय. एम करतां जे द्वीपें तथा जे समुद्रं ते पालाना सरसव खाली थाय तेवारें शुं करीयें, ते कदे ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ७७ ॥ खिप्पइ सिलाग पल्ले, गु सरिसवो इय सिलाग खिवणं ॥ पुसो बीत, पुत्रं पिव तम्मि उहरिए ॥ ७८ ॥ अर्थ – तेवारें तेनी संख्या निमित्त खिप्पइसिलागपल्लेगुसरिसवो के० शिलाकनामा बीजा पालाने विषे नेरो एक सरसव नाखीयें; हिंयां कोइएक आचार्य कहेबे के ते सरसव अवस्थित पालामांदेबीज लीजीयें, अने अन्य कोइ आचार्य वली एम कहे बे के ते सरसव बीजो नवो लीजीयें, श्रने शलाका पालामध्ये नाखीयें परंतु नवस्थित पालामांहेथी न लीजीयें, यहीं तत्व केवली जाणे. छात्रे काइ कदेशे के प्रथम जेवारें अनवस्थित पल्य खाली कयुं तेवारें एक सरसव सलाक पय विषे केम नाख्युं नहीं ? अने या बीजी वार अनवस्थित पल्य खाली थये थके एक सरसव शलाक पल्यने विषे नाख्युं कयुं तेनुं कारण शुं ? छात्र गुरु कहे बे के, अनवस्थित पल्य जरीने वलवीयें तेवारें एक शलाका पढ्यने विषे स्थापीयें, एम तिहां प्रथम पल्य तो जंबूद्वीप प्रमाण लक्ष योजन विस्तारवालो हतो तो तेने अवस्थित न कहीयें; केम के तेनुं प्रमाण बे तेमाटें तेने अवस्थित कहीयें. छाने बीजा ने अवस्थित कहीयें. ते छानवस्थित पल्यनी शलाकायें करीने शलाका नामें बीजो पढ्य जरीयें ढैयें. ते कारणे प्रथम पढ्य वर्जीने बीजा पल्यनुं ग्रहण कीधुं बे. श्य सिलागखवणेणं पुष्सोबी के० ए प्रकारें जिहां ते अनवस्थित पालाना सरसव जे द्वीप, समुद्र उपर मूक्या थका खाली यया ते द्वीप समुद्र प्रमाण वली बीज अवस्थित पालो कल्पीयें, तेने वली शिखा पर्यंत सरसवें करीने जरीयें ने Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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