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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ५ शए एम १०-११-१२-१३-१४-१५-१६-१७-१७ ए नव स्थानक होय, अने सासाणि के बीजे साखादन गुणगणे मिळविणा के पांच मिथ्यात्व न होय. माटें पंचावनमांहेथी पांच मिथ्यात्व काढीयें, तेवारें श्रविरति बार, कषाय पच्चीश अने योग तेर, एवं पन्न के पञ्चाश बंधहेतु उचे होय, तथा विशेषादेशे एक जीवप्रत्ये एक समयें जघन्यपदें दश हेतु होय. एम एकेक वधतो होय, तेवारें उत्कृष्ट सत्तर बंधहेतु होय. एम दशथी मांगीने सत्तर लगें आठ बंधहेतुना स्थानक होय, अने मीसग के० मिश्रधिक एटले औदारिकमिश्र अने वैक्रियमिश्र, त्रीजो कम्म के० कार्मणयोग, ए त्रण योग अने अण के अनंतानुबंधीया कषाय चार, एवं सात कर्मबंधना हेतु विणु के० विना शेष अविरति बार, कषाय एकवीश श्रने योग दश, एवं तिचत्त केण्तेंतालीश बंधहेतु उ मीसे के मिश्रगुणगणे होय, अने विशेषादेशे एक जीवप्रत्यें एक समय पंचेंजियमध्ये एक इंडियनी अविरति, बकायना बंधमध्ये एक कायनोबंध, बे युगलमध्ये एक युगल, तथा त्रण वेदमध्ये एक वेद, तथा चार कषायमध्येंना त्रण नेद होय; तथा दश योगमध्ये एक योग, एवं नव बंधहेतु जघन्यथी होय, अने उत्कृष्टथी तो बकायनो बंध, एक इंडियनी अविरति, एक युगल, एक वेद, कषायना त्रण नेद, जय, जुगुप्सा अने एक योग, ए शोल बंधहेतु लाने, ए मिश्रगुणगणे जीव काल न करे, तेथी अपर्याप्तावस्थायें जावीत्रण योग न होय, अने बंधहेतुस्थानक नवथी मांडीने सोल लगें श्राप होय. श्रह के श्रथ एटले हवे अविरति, सम्यक्त्वदृष्टिनामा चोथे गुणगणे उचत्ता के तालीश बंधहेतु होय, तेमध्ये तेंतालीश मिश्रमां कह्या, ते सेवा. हवे था गाथामां मिथ्यात्व, सास्वादन अने मिश्र, ए त्रण गुणगणे कर्मबंधना हेतु कह्या. तेना जेटला नांगा थाय, ते अनुक्रमें ए त्रणे गुणगणाना लखीयें बैयें. पंच्चावन बंधहेतु, मिथ्यात्वगुणगणे उघे होय, अने विशेषादेशें तो एक समय एक जीवने मिथ्यात्वे जघन्यथकी दश बंधहेतु होय, अने उत्कृष्टा. अढार बंधहेतु होय. केम के पांच मिथ्यात्वमांहेढुं एक मिथ्यात्व होय. तथा बकायमध्ये एक कायनो बंध होय, केम के बकायमध्ये कोई एक जीव, केवारें कायनोज वध करे, ते पण पृथ्वीकायनोज वध करे, अथवा अपकायनोज वध करे. ए रीतें बकायना ब नांगा थाय. तेमज वली को एक जीव, एक समयें बे कायनो पण वध करे तेना हिकसंयोगीया पंदर नांगा थाय, तथा को एक जीव, त्रण कायनो वध करे तेना त्रिकसंयोगीया वीश नांगा थाय, तथा को एक जीव, चार कायनो वध करे, तेना चतुःसंयोगी पंदर जांगा थाय, तथा को एक जीव, पांच कायनो वध करे, तेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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