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________________ ४१ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ पुरुष वेद कह्यो तथा स्तन, योनि प्रमुख अवयव सहित श्रने दाढी मुड रहित एवा मुखने जे धारण करे, ते व्यस्त्री जाणवी. अने पुरुषविषयिणी जिलाषारूप मैथुनसंज्ञा सहित जे जीव ते नावस्त्री जाणवी, ए बीजो कि के० स्त्रीवेद. तथा स्त्रीना अवयव स्तनादिक तथा पुरुषना अंग, दाढी, मूब प्रमुख ए बेहु जेने न होय ते ऽव्यन'सक जाणवा तथा स्त्री थने पुरुष, ए बेहु विषयिणी अनिलाषायें जे जीव वर्ते ते नावनपुंसक जाणवा. ए त्रीजो नपुंसग के नपुंसक वेद. एम वेद आश्री अव्य अने लावनेदें करी जीव त्रण प्रकारे जाणवा. ए पांचमी वेदमार्गणा त्रण प्रकारे जाणवी. ___ कसाय के कषायोदयनेदें विचारतां कोहमयमायलोनित्ति के क्रोधी, मानी, मायी अने लोनी, ए चार ने सर्व संसारी जीव होय, त्यां बीजानी साथें चित्तनुं विघट्टन परिणत ते क्रोधी. पोताने विषे अधिकता बुद्धिये अनमन विनावपरिणति, ते मानी. परनें वंचवा हेतु कुटिलता परिणति, ते मायी. परव्य साथै अन्नेदताबुझिपरिणति, ते लोजी. ए चारे कषाय, उदय विरोधी बे. जे जणी क्रोधादिकने उदयें मानादिकनो उदय न होय, अने मानने उदयें क्रोधनो उदय न होय, ए रीतें बही कषायमार्गणा चार प्रकारे जाणवी. झान, अज्ञाननेदें करी जीवन्नेद विचारतां श्राप प्रकारमांहे सर्व जीव आवे, ए दायोपशमिक दायिकपर्यायें जाणवा. त्यां इंघिय पांच, अने नोजिय, ए निमित्त वर्तमान विषय ज्ञान विशेष, ते प्रथम म के मतिज्ञान. शब्द संबंध अर्थविषयक त्रिकाल विषयवस्तुपर्यालोचन ज्ञान विशेष, ते बीजुं सुश्र के श्रुतज्ञान. अवधि एटले मर्यादायें रूपिडव्यविषयप्रत्यद, ते त्रीजु अवहि के अवधिज्ञान. मनुष्य क्षेत्रमांहे जे सन्नीथा पंचेंजिय जीवना मनोगत नाव नेदर्नु जाणवू, ते चोथु मण के० मनःपर्यायान. सकल थावरणरहित संपूर्ण सर्ववस्तु विषयि अनंतव्यवीषश्लं झान, ते पांचमुं केवल के केवलज्ञान जाणवू. मिथ्यात्वें करी विरुकनंगे विपरीतपणे वस्तुनो परिछेद, ते बई विजंग के विनंगज्ञान कहीये. जेम शिवराजर्षि सात बीप अने समुख देखी जाणवा लाग्यो, जे में सर्व हिप, समुफ, दीग; एम मिथ्यात्वने उदये जे श्रवधिज्ञान ते बहुं विजंगज्ञान कहीयें, तथा मिथ्यात्वीने एक मति, बीजूं श्रुत, ते पण अज्ञान कहीयें. जे जणी अनंतधर्मात्मक वस्तुने एकरूपे पूर्ण करी जाणे, ने संसारहेतु तेने मोहेतुरूप जाणे, एकज विधिरूप जाणे, अथवा निषेधरूप जाणे, एम एकांत जाणे पण उजयरूपें न जाणे तेथी अज्ञानी मिथ्वात्वी कह्या. सम्यकदृष्टिमा एक ज्ञानी ते केवली; अने बे शानी, ते मतिज्ञानी अने श्रुतझानी; तथा त्रण ज्ञानी, ते मति, श्रुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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