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बंधस्वामित्वनामा तृतीय कर्मग्रंथ. म बंधहेतु एने संजवे, तेथी उ ए त्रण प्रकृति सहित गजमनुष्यने उ एकसो ने वीश प्रकृतिनो बंध जाणवो, तेमध्ये जिननाम अने श्राहारकटिक, ए त्रण प्रकृ. ति मिथ्यात्वं न बांधे, तेथी प्रथमगुणगणे एकसो ने सत्तरनो बंध जाणवो, तेमध्ये नरकादिक शोल प्रकृति हीन करतां साखादने ( १०१) नो बंध, तेमांथी सुरायु तथा अनंतानुबंध्यादिक एकत्रीश, एवं बत्रीश हीन करतां शेष (६५) नो मिश्रगुणगणे बंध, तेमध्ये सुरायु तथा जिननाम ए बे प्रकृति, चोथे गुणगणे मनुष्य बांधे, तेवारें उंगणोतेर मांही बे मेलवतां (१) प्रकृतिनो चोथे गुणगणे बंध. एटसे बीजा कर्मग्रंथमां चोथे गुणगणे सत्त्योतेर प्रकृतिनो बंध कह्यो , तेमांथी प्रकृति हीन करीयें तेनां नाम कहेजे. मनुष्य त्रिक, औदारिक शरीर, बहुं संस्थान, अने हुं सं. घयण, ए बटालीये, तेवारें एकोतेर प्रकृति रहे ते, अहींयां चोथे गुणगणे मनुष्यने बंध कडेवी. तेमांथी बीजा कषायनी चोकमीनो बंध टाले, तेवारें पांचमे (६७) नो बंध. तेथी उचे त्रीजे, चोथे अने पांचमे ए त्रण गुणगणे श्रागला तिर्यंचना नवनो बंध जिननाम सहित करीयें, एटलुं विशेष बे.
अने प्रमत्तादिकगुणगणे कर्मस्तवोक्त बंध बे, जे जणी मनुष्य विना बीजाने ए गुणगणां न संजवे, तेथी तेनो बंधवामी मनुष्य के एटले प्रमत्ते त्रीजा कषायनी चोकडी हीन करतां (६३) नो बंध. तेमांथी शोक, अरति, अस्थिरहिक, अयश अने अशाता, ए 3 प्रकृति हीन करतां अने आहारहिक न्नेलतां अप्रमत्तें जंगणशाउनो बंध. तेमांथी सुरायु हीन करतां श्रापमाना प्रथमत्नागें (५७) नो बंध. तेमांथी निमाछिक दीन करतां आठमाना बीजाथी मांडीने बहा सुधीना पांच जागे (५६) नो बंध. सातमे जागेत्रसनवक, तथा औदारिकछिक विना शेष अंगोपांगबक, एवं पंदर. तथा देवछिक, श्रगुरुलघुचतुष्क. वर्णचतुष्क, पंचेंजिय, शुजविहायोगति, प्रथमसंस्थान, निर्माण, जिननाम, एवं त्रीश प्रकृति हीन करतां (२६) नो बंध. तेमांथी हास्यचतुष्क हीन करतां नवमा गुणगणाना प्रथमन्नागें (२२) नो बंध. पुरुषवे. दहीन करतां बीजे नागें (१) नो बंध. संज्वलनक्रोध हीन करतां त्रीजे जागें (२०)नो बंध. संज्वलनमान हीन करतां चोथे नागें (१ए) नो बंध. संज्वलनमाया हीन करतां पांचमे जागे (१७) नो बंध. संज्वलनो लोज हीन करतां दशमे गुणगणे (१७)नो बंध.तेमांथी ज्ञानावरणीय पांच,दर्शनावरणीय चार, नामनी एक,गोत्रनी एक श्रने अंतरायनी पांच, ए शोल प्रकृति हीन करतां श्रगीधारमा प्रमुख त्रण गुणगणे एक शातानो बंध जाणवो. अने अयोगी अबंधक जे.एम उचे कर्मस्तवोक्त वंधप्रमत्तादिकगुणगणे मनुष्यने लेवो. जे जणी ए नव गुणगणां मनुष्य विना बीजाने न होय.
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