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कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १
३७५ अर्थ-सुसरा के सुखरनामकर्मना उदयश्री महुर के मधुर मीठो, सुह के सुखदायि, कुणी के ध्वनि एटले स्वर होय. आश्जा के श्रादेयनामकर्मथी ते पुरुषनुं सवलोश के सर्व लोकने गिन के० ग्रहवायोग्य एवं वर्ड के वचन होय, जसजसकित्ती के यशकीर्तिनामकर्मथी जीवनी यश,कीर्ति सर्वत्र होय. थावरदसगंविवऊळ के स्थावरदशको ए थकी विपरीतार्थ जाणवो ॥ इत्यक्षरार्थः ॥५१॥
कोकीलानी पेरें जीणो, मीगे, शुक, शुक सालही कहेता मेना तथा मयूरनी पेरें शुन सुखदायि पुःखवारक स्वर लहीयें, ते सुस्वरनामकर्मना उदयथी जाणवो. तथा खर, उंट, फेतकारी, लुंकमी, मार्जार, घूडना शब्दनी पेरें कमवो, कागना स्वरनी पेरें अनिष्ट, घोघरो विरूप स्वर पामीयें, ते फुःस्वरनामकर्मनो उदय, ए नाषापर्याप्ति पूरी कस्या पली होय, ते नणी वचनप्रतिबंध के अने श्रोत्रंजियने सुखदायी तथा उःखदायि होय. _ए आदेयनामकर्मना उदयथी जीवनुं वचन, शुन शकुनना वचननी पेरें इष्ट मानवा योग्य सुखें समजवा योग्य होय, तेमज अनादेयनामकर्मना उदयथी जीव जो पण मायुं हितकारक वचन कहे, तोपण तेनुं वचन कोश्ने सुहाय नहीं, अशुन शकुननी पेरें अनिष्टपणे माने, सुस्वर थका पण अपशकुननी पेरें सुहाय नहीं.अहीं थादेयथी मान्य वचन होय अने सुस्वरनामकर्मथी सुकंठ होय एटलो नेद जाणवो.
१० जे एकदिशें नाम विस्तरे, ते कीर्ति; अने जे चारे दिशायें शोना बोलाय, ते यश, अथवा दान शीलादिक गुणें करी शोजा वधे, ते कीर्ति अने पोताना पराक्रमें अव्यन्नाव शत्रुजयादिक गुण विस्तरें, तेने यश कहीयें. ए बे वानां जे कर्मना उदयथी जीव लहे, ते यशःकीर्तिनामकर्म. तथा जेना उदयथी यशःकीर्ति न लहे, ते अयशः. कीर्तिनामकर्म. ए त्रस दशको कह्यो.
अने ए थकी विपरीत उलटो अर्थ स्थावरादिक दश नामकर्मनो जे नेद, जे जणी त्रस फीटी स्थावर थाय, ते स्थावर नाम कर्म, तेमज बादरपणुं फीटी सूक्ष्मपणुं पामे, एम अनुक्रमें स्थावर दशक जाणवू. एटले त्रसविंशतिनुं स्वरूप कह्यु. ए रीतें नामकर्मना शमशह तथा त्राणु तथा एकसो ने त्रण नेदतुं स्वरूप कडुं. ॥५१॥
॥ हवे गोत्र तथा अंतराय ए वे कर्म कहे . ॥ गोअंहुच्च नीअं, कुलाल इव सुघम जुंनलाईनं ॥ विग्धं दाणे लाने, नोगुवनोगेसु विरिएअ ॥५॥
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