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इंज्यिपराजयशतक. ___ व्याख्या-तेम महिलाणकायसेवी के स्त्रीनी कायानो सेवणहार पुरुष ते किंचि के कांड पण सुहं के सुखने न लहर के नथी लहेतो; परंतु ते वराउ के बापमो रांक सयकाय के० पोतानी कायाना परिस्समं के परिश्रमने सुखमन्नए के सुखरूप माने बे.॥ ३४ ॥ सुविमग्गिसंतो के अतिशय अविलोक्युं तो पण कछवि के कहींए पण कयदी के० केविने विषे जह के जेम सारो के सार नहि के नथी, तहा के० तेमज इंदियविसएसु के० इंजिउना विषयोने विषे पण सुहं के सुख ते सुछवि गविहं के अतिशे श्रुष्टु जोश्तुं नहि के० नथी. ॥ ३५ ॥ सिंगारतरंगाए विलासवेलाइ जुवणजलाए॥केके जयंमि पुरिसा नारीनईए न बुढती ॥३६॥ सोअसरी उरिअदरी कवडकुमीमदिलियाकिखेसकरी ॥ वश्रविरोयणअरणी उरकखाणीसुकपडिवरका ॥३७ ॥ व्याख्या-सिंगारतरंगाए के शंगाररूप जेमा तरंग के कबोलो , अने विलास वेला के० विलासरूप जेमां जलत्रमर बे, अने जुव्वण जलाए के० यौवनरूप जेमां जल , एवी नारीनईए के नारीरूप नदीने विषे न बुढंति के नथी बमता, एवा जयंमि के जगत्ने विषे केके के कोण कोण पुरिसा के पुरुष ? अर्थात् नारीरूप नदीने विषे नथी बड्यो एवो कोइ पण पुरुष जगतमा नथी. ॥ ३६॥ सोयसरी के शोकरूप नदी एवी, कुरिथ के कपट, तेनी दरी के० गुफा एवी, कवम के क पटतानी कुमी के कुंमी एवी, किलेसकरी के क्वेशनी करनारी एवी, वश्र के वैर ते रूप विरोयण के० विश्वानर एटले अग्नि, तेने उपजाववा माटे अरणी के० श्ररणीना काष्ठ सरखी, एवी महिलीया के स्त्री , ते उकखाणी के कुःखनी खाण, श्रने सुरकपमिवरका के सुखथी उपरांठी . ॥ ३७॥
अमुणिमणपरिकम्मो सम्मं को नाम नासि तर ॥ वम्मदसरपसरोदे दिम्बिोहे मयडीणं ॥३॥ परिदरसु तऊतासिं दिहिंदिछीवि सस्सव अदिस्स ॥ रमणि नयणबाणा चरित्तपाणे विणासंति॥३॥ व्याख्या- अमुणिश्र मणपरिकम्मो के नथी जाएयुं मन- पराक्रम जेणे एवो को के कोणपुरुष मयहीणं के मृगादिना दिबिोहे के दृष्टिदोने करी वम्महसर के० कंदर्पनां जे बाण, पसरोहे के पसरे; तेनाथी नासितं तर के नासवाने समर्थ थाय? अथात् को समर्थ न थाय, ॥ ३० ॥ एमाटे हे जीव ! अहिस्स के सर्पनी विसस्सवदिति के विषमय दृष्टि तेवी जेनी विषयष्टि, अने जं के जे र
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