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________________ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. ... अर्थ- उंगणीश हजार सातसें ने सवाचोराणु योजन एटबुं विजयतुं विष्कंज थाय, तह के तथा प्रकारे इह के ए पुष्कराई हीपने विषे, बहि के बाहेरनी दिशाए जेना पाणी वह के वहे , एवी जे सलिला के नदी तेनी नजीक को समुफ नथी; ते माटे नरनगस्स के मानुष्योत्तरने अहो के हेठे मूलमा पविसंति के० पेसे . ॥ २५ ॥ श्द पनममदापनमो ॥ रुका उत्तरकुरूसु पुचिव ॥ तेसु य वसंति देवा ॥ परमो तद पुंडरीय ॥ २१ ॥ अर्थ- श्ह के ए पुष्कराईने विषे उत्तर कुरूसु के बन्ने उत्तर कुरुक्षेत्रमांहे प. उम महापजमोरुका के० पद्म अने महापद्म एवे नामे वृक डे, ते पुस्विंव के पूर्वे जंबूझीपवत् एटले जंबूछीपनी पेरे तेसुय के ते पद्म अने महापद्मने विषे पलमो तहपुमरीयदेवावसंति के० पद्म तथा पुंडरीक एवे नामे बे देवता रहे जे. अने देवकुरुक्षेत्रनेविषे तो जंबूहीपनी पेरे गरुमदेवने वसवायोग्य बे सामलीनां वृक्ष जे. ॥२५॥ पुरस्करदल पुवादर ॥ खंड तो सदस उग पिहुकुडा ॥ नणियातहाणपुण ॥ गीयबा चेवजाणंति ॥२५॥ अर्थ- पुष्कराई क्षेत्रने विषे पूर्व पश्चिम दिशाना बन्ने खममांहे बे हजार योजन पोहोला एवा बे कूट कह्या बे, ते कूटनां स्थानक तो पुण के वली जे गीतार्थ ज्ञानवंत होय ते जाणे. यमुक्तं ग्रंथांतरे ॥ इसितलेकमसोजुवि ॥ सहसजोयणपिहुदसोगाढा ॥ श्रगेविडुकुंमा ॥ तिबकनवनवइंसहसगमे ॥१॥ ५५ ॥ ॥ हवे मनुष्य क्षेत्रमांहे सर्व पर्वतनी संख्या कहे .॥ दो गुणदत्तरि पढमे ॥ अड लवणे बीयदीव तश्य॥ पितु पिडपण सय चाला, श्य नरखित्ते सयलगिरिणो ॥ श्५३ ॥ अर्थ-प्रथम जंबूझीपने विषे बसें ने उगणोतेर पर्वत ले. ते कहे . एक मेरु, उ कुलगिरि, चार गयदंता, सोल वदस्कार, चोत्रीश लांबा वैताढ्य, चार वृत्त वैताट्य, चार यमलगिरि, अने बसें कांचन गिरि. ए सर्व मली बसें ने उंगणोतेर पर्वत जंबबीपमांहे जाणवा. अने अमलवणे के० श्राउ पर्वत लवणसमुज मांहे . बीयदीव के बीजा धातकीखंग मांहे पांचसें ने चालीस पर्वत बे, केमके जंब्रहीपना बसें नेगणोतेरने बमणा करीने बे षुकार पर्वत नेलीएं, तेवारे पांचसे ने चालीश थाय. अने ह के निश्चे तश्यऽपि के त्रीजो थर्ड एटले पुष्कराने विषे पण पांचसे ने चा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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