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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. कक्कोडे विझुपदे ॥ केलासरुणप्पदे विदिसि सेले ॥
कक्कोडग कदम ॥ केलास रुणप्पहो सामी॥२०॥ अर्थ- हवे इशान प्रमुख चार विदिशिने विषे कर्कोटक, विद्युत्प्रन, कैलाश श्रने अरुणप्रन एवे नामे जे चार आवास पर्वत , तेने विषे अनुक्रमे कर्कोटक, कदम, कैलाश अने अरुणप्पदो के विद्युत्प्रन एवे नामे चार अनुवेलंधर नागकुमार देवताना सामी के खामि जाणवा. जे विदिशिने विषे रहे तेने अनुवेलंधर कहिएं. ॥२०॥
॥ हवे ए पर्वतना मान श्रने वरण कहे .॥ एए गिरिणो सवे ॥ बावीसदिया य दससया मूखे ॥ चन
सय चनवीसदिया ॥ विबिला हुंति सिहरतले ॥२०॥ अर्थ- एएगिरिणोसवे के ए सर्व वेलंधर, अने अनुवेलंधर नामे जे आवास प. वंत , ते बावीसहियाय दससयामूले के एक हजार ने बावीश योजन मूलने विषे पोहोला जाणवा. अने चउसय चवीसहिया के चारसे ने चोवीश योजन सिहर तले के० शिखरस्थले एटले शिखरने विषे विहिला के विस्तारेपोहोला हुँति के ले.२०७
सतरससय इगवीसे ॥ उच्चत्ते ते सवेश्या सवे॥ कणगं
करययफालिद, दिसासु विदिसासु रयणमया॥ २०॥ अर्थ- वली ते पर्वत केहवा बे? तो के-एक हजार सातसें ने एकवीश योजन जच्चा त्ते के ऊंचा , वली ते सव्वे के० ते आठ पर्वत केहवा बे, सवेश्या के वेदिकानवनखंम तेणे करीने सहित बे, वली कणगंकरयय फालिह के कनक, शंकरत्न, रू', अने स्फाटिकरत्न एनी पूर्वदिशिथी अनुक्रमे गोधनादिक चार पर्वत जे. अने विदिसासुरयणमया के० विदिशिनेविषे जे कर्कोटादिक चार पर्वत , ते रत्नमय जाणवा. ॥ २० ॥
॥ हवे ए श्राव पर्वत पाणी उपरे केटला देखाय बे ते कहे . ॥ नवगुणहत्तरि जोयण ॥ बहिजखुवरि चत्त पण नवनाया ॥ एए मले नवसय ॥ तेसहा नागसगसयरी॥१०॥ अर्थ- ए भाउ पर्वत बदि के जंबूछीपनी विशिएं मवगुणहत्तरिजोयण के नवसे ने जंगपोतेर योजन उपर एक योजनना, पमनवजाया के पंचाणु नाग करिएं, तेवा चत्त के चालीश नाग अधिक एटला योजन जंबछीपनी दिशिएं जलुवरि के पाणी उपर देखाय बे. तथा, एए के ए पर्वत मके के मांहेली लवण समुनी शिखानी विशिथी जोतां नवसयतेसहा के नवसेने त्रेसवयोजन उपर एक योजनना
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