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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण.
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अर्थ - एयंचपयरगुणियं के० ए प्रतरनुं गणित दक्षिण जरतादिक क्षेत्र तथा गिरिनुं गणितपद ते संववहारेण के० संव्यवहारे देसियं के० देखाड्यं बे, ते के० ते कारण माटे किंचूहोइफलं के० कांइक उएं फल होए, अ के० तथा इपिके० ए सर्व प्रतर एकठाक बमणा करिएं तेवारे सातसें ने उगणाएंसी कोडी, अठार लाख, सीतोतेर हजार, चारसे ने उप्पन्न होए. ते सगसय नऊयाकोमी ए गाथाएं जोतां अंतर पडे बे ने जो शेष नाग जगरे तेना वल्ली जाग करीने गणिएं तो हवश्सुडुमगणणा के० सुक्ष्म गणना, थाय, तो ते सुक्ष्मगणनानी पेरे पूर्ण पण याय ते करण - नुं विशेष जाणवुं ॥ १८५३ ॥
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॥ हवे घनगणित कहे बे. ॥
पयरो सोरसेदगुणो ॥ दोइ घणोपरिरयाइ सवं वा ॥ करण गणणालसेदिं ॥ जंतगल हियान दग्धं ॥ १९४॥ ॥ इति जंबू दिवादिगारोपढमो समत्तो ॥
अर्थ- जे वैताढ्य प्रमुख पर्वतनुं पयरो के० प्रतर गणित बे, सो के तेने जेवारे वैताढ्य प्रमुख पर्वतना उस्से गुणो के० उंचपणानी साथे गुणीएं तेवारे वैताढ्य प्रमुख पर्वतनुं दो घणो के घनगणित याय, ते वैताढ्य प्रमुखना प्रतर जेवारे उंचपणा साथै गणी वारे जाणीएं. ए परिरयाइ के० परिध्यादिक यवनो वर्त्तारो को. वा to अथवा ए स के० सर्व परिधि प्रमुखनुं जे करण गणण के० करणनो विधि साथे गणवाने जे मनुष्य घालसेहिं के० बालसवंत होय ते मनुष्ये पूर्वाचार्ये जे जंतग के० यंत्र लहियाउ के० लख्या वे, त्यांथकी दिघ्व के देखवुं, एटले यंत्र उपरथीज जोवुं, चिंतaj ॥ १०४ ॥
॥ हवे ए जीवाप्रमुख गणितनी संग्रह गाथा कहे . ॥
जोयणसहस्सनवर्ग | सत्ते वसया हवं तिश्रमयाला ॥ बारसयकला सकला ॥ दाहिएजरहरू जीवार्ड || १|| दसचेवसदस्साई || जीवासत्तयसया श्वीसाई ॥ बारकला - या || वे गिरिस्सविन्नेया ॥ २ ॥ चउदस यसदस्साई ॥ सयाश्चत्तारिएग सयराई ॥ नरहनुत्तरजीवा ॥ वञ्चकलाऊणियाकिंचि ॥ ३ ॥ चोवीस सहस्साई ॥ नवसय याजोयणाण बत्तीसे ॥ चुल्ल हिमवंतजीवा ॥ श्रायामेां कलऊंच ॥ ४ ॥ सततीससहस्साई ॥ बच्चया जोयपाण चउसयरा ॥ देमव यवासजीवा ॥ किंचूणा सोलसकलाय ॥ ५ ॥ तेपन्न सहस्साई ॥ नवसय्या जोयणाण गतीसा ॥ जीवामदा हिमवए ॥ श्रकला बक्कलाय ॥ ६ ॥ एगुत्तरानवसया ॥ तेवत्तरिमेव जोयणसहस्सा ॥ जीवासत्तरकला ॥ श्रद्धकला चेवह्निवासे ॥ ७ ॥ चणवर सहसा || उप्पन्न हि यं
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