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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण.
३४१ ॥ हवे चंडमाना प्रत्येक मंडलने विषे मूहूर्त गति कहे .॥ साहियपणसहस तिहु, त्तराइ ससिणो मुहुत्तगइ म ॥
बावसहिया सा बदि ॥ पश्मंडल पजणचवुढी ॥ १४ ॥ - अर्थ- ससिणो के चंजमा जेवारे निषध पर्वतने माथे मले के सर्वाच्यंतर मंगले जगे तेवारे एक मुहर्तमांहे साहिय पण सहसतिहत्तरा के० साधिक पांच हजार ने तहुत्तेर योजन चाले, एटले पांच हजार तहुत्तेर योजन, अने उपर एक योजनना तेर हजार सातसो ने पचीश नाग करीएं तेवा सीतोतेरसोने चुमालीश जाग उपर एटली मुहर्तगति करे. त्यार पड़ी जेवारे बीजे त्रीजे मांगले जाय तेवारे पक्ष मंगल पठणचवुट्ठी के प्रतिमंमले पोणाचार योजननी बुद्धि करीएं. एम मंडल प्रते मुहर्त दीठ पोणाचार योजन वधारतां जेवारे पंदर मंडल सुधी सा के ते मुहर्तगतिए जेवारे चंडमा बहि के लवण समुसमांहे सर्व बाह्य मांडले उगे तेवारे बावन हिया के बावन योजन अधिक करिएं तेवारे एकेक मूहुर्ते पांच हजार एकसो ने पचीस योजन उपर एक योजनना तेर हजार सातसें ने पचीश नाग करिएं तेवा ब हजार नवसें ने नेवुनाग अधिक जाणवी, एटली बाहेरने मंगले चंजमा एक मुहूर्त्तमांहे गति करे. ॥१॥
जा ससिणो सा रविणो ॥ अडसयरिसरण सीसएण दि.
या ॥ किंचूणाणं अमा, रसहिनागाणमिद वुढी ॥ २७५ ॥ अर्थ- जाससियो के जे चंडमानी मांहेना मामलानी मुहूर्तगति, पांच हजार ने तहुत्तेर योजन काज़ेरी कही सा के तेज सर्वाच्यंतर मांडले रविणो के० सूर्यनी गति बे, परंतु तेमांहे अमसयरिसएण के० एकसो ने अहोतेर योजन सहीत करिएं, एटभी अधिक सूर्यनी मांहेले मंडले मुहूर्त गती जाणवी. एटले जेवारे पांच हजार तहो. तेरमांहे एकसो ने अहोतेर नेलीएं तेवारे पांच हजार बसें ने एकावन्न योजन, अने एक योजनना साठ जाग करिएं तेवा गणत्रीस नाग काजेरी सूर्यनी गति जाणवी. अने चंजमानी बाहेरने मंडले जे मुहर्तगति एकावनसें ने पचीस योजन कही, तेमाहे असीसएणहिया के० एकसो ने एंसी योजननी वृद्धि करिएं तेवारे त्रेपनसें ने पांच योजन अने साठीथा पंदर नाग एटली बाहेरने मांडले सूर्यनी मुहूर्त्तगती जाणवी. किंचूणाणंअहारसहिनागाणमिहबुढ्ढी के कांश्क जणा साठीथा अढार जाग एटला मांना मंडलश्री बाहेरने मंडले श्रावतां प्रत्येक मंगले सूर्यनी इह एट ए मुहर्तगतिमाहे वृद्धि जाणवी. ॥ १७५॥
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