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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. तह के तथा प्रकारे बीजे आरे पनरपन्नरअहिया के पंदर पंदर दिवस अधिक प्रतिपालना जाणवी. ते आवी रीते के, बीजे बारे चोसठ दिवस अपत्यपालना होए, अने त्रीजे थारे जंगणाएंसी दिवससुधी अपत्यपालना जाणवी. तेवारपडी ते युगलनां मातपिता मरण पामे. ए त्रण भारानेविषे अवि के थपि इति निश्चये सयलजियाजुयला के समस्त पंचेंजी जीव ते युगलिया जाणवा. पण ते युगलिक केहवा ? तो केसुमणसरूवा के जलु डे मन जेमने एटले अस्प कषाय , तथा सरूवा एटले रूपवंत बे, तथा समचरंस संस्थान ने तेमाटे सुंदराकार बे. वली ते युगलिक केहवा ? तो के-सुरगश्या के देवताने विषे जे उपज जेमनुं, एटले युगलिया मनुष्य तथा तिर्यंच ते सर्व पोताना आयुष्यथी उजे आयुष्य प्रमाणे अथवा पोताना आयुष्य प्रमाणेज देवतामांहे जश् उपजे. ॥ ए५ ॥ ॥ हवे एत्रण श्राराने विषे युगलियाने कल्पवृक्ष जे ___ वांछित थापे ते बे गाथाएं कहे . ॥ तेसि मत्तंग लिंगा॥ तुमियंगा जो दीव चित्तंगा ॥ चित्तरसा मणियंगा ॥ गेहागारा अणिययरका ॥ए॥पाणं नायण पिबाण ॥ रविपद दीवपह कुसुम माहारो ॥नूसण गिद वासण ॥ कप्पडमा दसविदा दिति ॥ ए ॥ .. अर्थ- तेसि के० ते युगलियाने विषे मत्तंग प्रमुख दश जातिना कल्पवृक्ष बे; ते पानक प्रमुख दश प्रकारना वांछित पदार्थ आपे . ते श्रावीरीते-अहिंयां बे गाथानो अर्थ एकगे सांकलीने कहे - मत्तंग के मत्तंग नामे जे कल्पवृक्ष डे ते पाणं के प्राद खारेक प्रमुखना रस सरखा मीगरस आपे, यथा ॥ सरस सुगंध मनोहर विसिम्बल विरिय कंतिचयहेऊ॥ मत्तरसंगामेसुनपस विविहमजारसो ॥ इति. बीजो निंगा के नंगनामे जे कल्पवृक्ष ते जायणं के नाजन ते थाली तथा वाटली तथा चरु अने कलश प्रमुख आपे- यथा ॥ निंगालथालवय कच्चोलय वकमाणमाईणि ॥ कंचणरयणमया, जायंतियजायणंगेसु ॥ इति. त्रीजो तुडीयंगा के तुर्यांग नामे जे कल्पवृद ते पिछण के महावा जित्रसहित बत्रीस बझनाटक देखाडे बे. यथा ॥ सजलघणगुहिरकलरव, चउन्नेय विजत्तपवराउजं ॥ जुयलंमियनराणंतुडियंगनरापमाणंति ॥ चोथो जोश के ज्योतिरंग नामे जे कल्पवृक्ष ले ते रात्रिनेविषे पण रविपह के सूर्यनीपेरे प्रकाश करे बे. यथा ॥ जोईपुम्मणमुवरि ॥ ससिसूराजल वच्चमाणावि ॥ ताणपहावोपहया ॥ निययंचायं विमुंचंति ॥ तथा पांचमो दीव के० दीपांग नामे जे कल्पवृद ते घरनेविषे दीवपह के दीवानीपरे अजुयालु करे . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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