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________________ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. २०५ वृक्ष ने शीमला वृना सोल ए जे बसयरिकूडेसु के० जे बोतेर कूट बे, तेमने विषे जिजवणा के० जिनजवन जलिया के० का बे. तहा के० तेमज चूला के० मेरु पवर्तनी चूलिकाने विषे तथा मेरुपर्वतना चडवण के चार वनने विषे तथा तरुसु के० जंबू तथा शीमलाना वृक्ष उपर, एटले स्थानके जिनजवन कह्यां बे. ए जिनजवनने विषे पांचसें धनुष्य प्रमाणे रत्नमय कूपन, चंद्रानन, वर्द्धमान ने वारिषेण ए चार नामे जिनप्रतिमा बे. सेसवगणेसु के० शेष बीजा कूटनेविषे जे बे स के० ते देवया के० देवतानां जवन जावां त्यां श्राप थापणे कूटने नामे देवतानां स्थानक बे ॥ ७७ ॥ ॥ दवे बीजा कूटोने विषे जिनजवननुं विसंवाद एटले बे किंवा नथी तेनो विचार कहे बे. ॥ करि कुड कुंड नदद ॥ कुरु कंच जमल सम वियह्ने जिणनवण विसंवार्ज ॥ जो तं जाणंति गीयता ॥ ७८ ॥ ॥ अर्थ - करिकूम के करिकूट तथा कुंड के० कुंड बे तेमां तथा नइ के० नदी ने दह के० द्रह तथा कुरु के० कुरुक्षेत्रने विषे जे कंचण के० बसें कंचनगिरि बे, तेहने विषे तथा सीतोदा ने सीताना हनी पासे जे जमग नामे चार पर्वत बे त्यां, तथा समविसु के० वृत वैताढ्य, एटलां स्थानकने विषे जिजवणविसंवार्ड के० जिनजवननो विसंवाद बे. एटले संदेह बे. जोतं जाणंति गीयता के० तेहना निश्चयनी वार्ता गीतार्थ ज्ञानवंत जाणे. ॥ इति गाथार्थ ॥ ७८ ॥ ॥ हवे चार गाथाए करी वैताढ्यनुं स्वरूप कहे . ॥ पुधावरजलहिंता || दसुच्च दसपिहुल मेहलचनका ॥ पणवीसुच्चापमा, सतीस दस जोयण पिहुत्ता ॥ ७९ ॥ अर्थ- पुवावरजलहिंता के० जंबुद्वीपने विषे जरत ऐरवतना जे बे दीर्घ वैताढ्य बे पूर्व समुद्र ने पश्चिम समुलगी दीर्घ एटले लांबा जाणवा. पण ते वैताढ्य केवा बे ? दसुच्च के० समभूतल थकी दश योजननी उंची अने दस पिहुल के० दश योजन पहोली एवी ने पासानी थइने मेहलचलका के चार मेखला बे जे वैताढ्य - विषे एटले एकेकी वैताढ्ये चार मेखला, ते दक्षण अने उत्तर एकेकी दिशाए बे बे मेखला बे. तथा ए वैताढ्य बे ते पणवी सुच्चा के० पचीश योजन उंचा बे. वली ते वैताढ्य केवा बे ? पचास, त्रीस ने दश, एटला योजन पहोला बे; एटले समभूतलयी मांगी दश योजन उंचे जइए त्यहांलगे पलास के० पचास योजन पहोलाइ ए प्रथम मेखला, त्यहांथी उपरे दश योजन उंचपणालगी ते वैताढ्य बे ते तीसजोयण पित्ता के० त्रीश योजन पहोलाइएं बीजी मेखला बे. त्यहां बीजी मेखला उपरथी पांच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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