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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. २०३ जिननवन जे; ते केवा जे? तो के-दहदेवीजवणतुबपरिमाणा के अहदेवी जे श्री तथा सदी प्रमुख-तेमनां जे जवन बे, ते सर ने परिमाण जेमनुं एवां जिननवन बे. सेसेसु के० वैताढ्यना बीजा सर्व कूट उपरे जे पासाया के देवतानां प्रासाद बे, ते केवां जे? अङ्ग्रेगकोसं पिहुच्चत्ते के अर्डकोश पहोला बे, अने एक कोश उंचां एहवां देवताउँनां नवन ने. इति गाथार्थ. ॥ ७ ॥ ॥ हवे ए सर्व कूटनो विस्तार कहे जे.॥ गिरिकरिकुडा उच्च, त्तणान सम अक्ष्मूलुवरि रुंदा॥ रयणमया नवरि विय, ह मङिमा ति त्ति कणगरुवा ॥ ३ ॥ अर्थ-गिरि के सर्व पर्वतोना कट अने करिडा के नशालना वननेविषे जे करी एटले हाथीने श्राकारे आठ कूट बे, ते कूट उच्चत्तणाज के उंचपणाएं सम के सरखा, मूल के मूलने विषे रुंदा के विस्तारे एटले पहोला . अर्थात् जेटला योजन ऊंचपणे जे तेटलाज योजन मूलने विषे पहोला बे. अने उच्चत्तणाज के ते उंचपणाथी अफ के अर्ड उवरि के उपर शिखरनेविषे रुंदा के विस्तारे बे. एटले पहोलपणे बे. ते केम ? जे कूट सहस्त्र योजन ऊंचां बे, ते मूलनेविषे सहस्त्र योजन पहोला . अने सहस्रनुं थर्ड पांचसे योजन उपर शिखरने विषे पहोला बे. वली जे कूट पांचसे योजन ऊंचां बे, ते मूलने विषे पांचसे योजन पहोलां बे. अने पांचर्से योजननु अई अढीसे योजन शिखर उपर पहोला . वली जे कूट पचीश कोश जंचां , ते मूलने विषे पचीश कोश पहोला .अने पचीशन अर्ज साढाबार कोश शिखर उपरे पहोलां . अने ए सर्व कूटनी चढतां उतरतांनी जे हानी वृद्धि ते जगतीनी पेठे कही , तेम जाणवी. वली ते कूट केवां ? रयणमया के० ते सर्व कूट रत्नमय बे. पण नवरि के० एटदुं विशेष बे के, जे वैताढ्यपर्वतोना नवनव कूट जे डे तेमांदे मजिमातित्ति के वचला त्रण त्रण कूट जे ले ते कणगरुवा के तपाव्या सुवर्णमय . अने सहस्रांक नामे जे त्रण कूट ले ते तो कनकमयी बे; एम प्रथमज कहेला . शति गाथार्थ ॥ ३ ॥ ॥ हवे जंबूवृदनी पीठिकाने विषेश्राप कूट ते तरुकूट कहेवाय जे ते कहे जे.॥ जंबूणयरययमया ॥ जगइसमा जंबुसामलीकूडा ॥ . अ तेसु दददे, वि गिदसमा चारुचेहरा ॥ ४॥ अर्थ-जंबू के जंबूवृक्ष अने सामली के शीमलानुं वृक्ष, तेहनेविषे जंबूणय के जंबूनद ते रक्तकनक अने रयय के० रुपुं तेहना कूट अनुक्रमे जाणवा. पण ते कूट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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