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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. चार जागे वहेंचतां श्एV६४६ योजन अने त्रण कोस उपर, एटवू एकेका बारणानुं अंतर जे. एम सर्वत्र जाणवू. ॥ १६ ॥
वली जगती केवी ? अहुंच के श्रायोजन उंचा, चउसु के चार योजन विकर के विस्तारवंत अने पास के बेपासे सकोस के० एकेका कोस सहित एवी कुट्ट के बारसांखनी नींत ने जेमनेविषे एवा दाराइं के दरवाजा जे जगतिउने विषे डे एवी . वली जगती केवी ? पुवाइ के० पुर्वादि चार दिशिउने विषे जे महि हि के० महर्डिक देव के देवता तेना दार के दरवाजा, तेमनां नामे नाम ; ते नाम विजाया के० विजयादि चार अनुत्तर विमाननांनामे बे, जे जगतीने विषे एवी .१७
वली जगती केवी ? नाणा के अनेक प्रकारनां जे मणिमय के मणिरत्नो तेहनी देहली के जंबरो तथा कवाम के कमाम अने परिघा के० नोगल-तेणे करीने दरवाजानी सोहाहिं के शोना बे, जगहिं के जे जगतिउनेविषे. एवी जगतीउए तेसवे के जे पूर्वे कह्या ते सर्व दीवोदहिणो के बीप समुज परिखित्ता के वींच्या जे. ॥ १७ ॥ ॥ हवे एक गाथाए करी वेदिकाना बे बाजुना वन- रमणिकपणुं देखाडे जे. ॥
वरतिण तोरण कय ब, त्तवाविपासाय सेल सिलवट्टे ॥
वेश्वणे वरमंमव ॥ गिहासणेसू रमंति सुरा ॥ १० ॥ अर्थ-वर के पंचेंजियोने पुष्ट करवाने विष तत्पर एवा, तिण के तृण नडादिक एवे नामे वनस्पति तोरण के० बाहेर दरवाजाने शोनाकारक तोरण, जय के ध्वजा, बत्त के बत्र, वावि के वापि, पासाय के प्रासाद एटले देवोने रमवानां घर, सेल के रमवाना पर्वत, अने सिलवट्टे के० विस्तीर्ण एवा पाषाणो ने जेनेविषे एq जे वेश्वणे के वेदिकाना बेहु बाजुनुं वन-तेने विषे वर के मनने गमे एवा मंडव के प्रादादिना जे मांडवा तेनेविषे, तथा गिह के केलीप्रमुखना जे घर तेनेविषे, वली श्रासणेसू के नला बेसवायोग्य सिंहासनादि तेनेविषे, सुरा के देवता ते रमंति के रमे डे, क्रीडा करे बे. ॥ १७ ॥
॥ हवे अधिकारी देव श्रने देवीनी उत्पत्ति कहे . ॥ इद अदिगारो जेसिं ॥ सुराण देवीण ताण मुप्पत्ति ॥
नियदीवोददि नामे ॥ अस्संखश्मे सनयरीसु ॥२०॥ . अर्थ- इह के० ए जंबूछिप, लवणसमुप, धातकीखंड, तथा पुष्कराई-ए सर्व मली पिस्तालीश लाख योजननो वृत्त विस्तारवालो मनुष्य क्षेत्र बे, तेने विषे जे सिंसु
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