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________________ ए३ संग्रहणीसूत्र. जावे ते वैक्रियशरीर उत्कृष्टुं लाख योजन प्रमाण करे. अने नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमानने विषे जवधारणीयज शरीर बे, परंतु उत्तरवैक्रिय शरीर करवानी शक्ति बतां पण को काम पडतुं नथी, के जे थकी तेमना रहेवासी देवताने उत्तरवैक्रिय शरीर करवू पमे. ॥ १४ ॥ ॥ हवे जवधारणीयशरीर, तथा उत्तरवैक्रियशरीरनी जघन्य अवगाहना कहे . ॥ साहाविय वेनविय ॥ तण जहन्ना कमेण पारंजे ॥ अं गुल असंख नागो॥अंगुल संखिजनागोय ॥२४॥ अर्थ- साहाविय के स्वानाविक ते नवधारणीय अने वेनविय के उत्तरवैक्रिय ए बंने जे तणू के शरीर ते जहन्ना के जघन्यथकी कमेण के अनुक्रमे पारंने के प्रारंजनी वेलाए जवधारणीय शरीर करवा मांडतां अंगुल असंख नागो के जघन्यथी अंगुलने असंख्यातमे नागे होय. अने उत्तरवैक्रिय करवा मांगतां जघन्यथी अंगुलसं. खिड़ नागोय के० अंगुलने संख्यातमे जागे होय. एटलो माहोमांहे फेर बे; ए ज. घन्य शरीर ते प्रारंजकालेज होय. अन्यथा न होय. ॥ १४१ ॥ “ सुरेसु उगाहणादारं सम्मत्तं "-देवताने विषे अवगाहना संबंधी त्रीजुं हार संपूर्ण थयुं. ॥ ( इण्हि विरह कालोववाय उवट्टणाणं दारंजाम ) हवे देवने उत्पात विरहकालनुं अने चवन विरहकाल- ए वे छार साथे कहे जे॥ सामन्नेणं चनविद ॥ सुरेसु बारस मुहुत्तनकोसा ॥ नव वाय विरद कालो॥ अह नवणाईसु पत्तेयं ॥ २४ ॥ अर्थ- सामनेणं के सामान्यपणे चनविहसुरेसु के चारे निकायना देवतानेविषे समुच्चय बार मुहर्तनो उत्कृष्टो उपजवानो विरहकाल जाणवो. ___ अहींयां नावार्थ ए जे के चारे निकायना देवता निरंतर उपजे बे. ते उपजवामां केवारेक उत्कृष्ट अंतर पडे, तो सामान्यपणे बार मुहर्त्तनुं पडे. तेवारपनी अवश्य चारे निकायमांहेला कोश्क निकायमा कोश्क देवता नीपजे. एहनी शाख पंचसंग्रह ग्रंथ कहे जे के, गर्जजतिर्यंच, मनुष्य, देवता अने नारकी, ए चारेने उपपात विरहकाल उत्कृष्टो बार मुहूर्त्तनो होय. तथा समूर्छिम मनुष्यने उत्कृष्टो उपपात विरहकाल चोवीस मुहूर्त्तनो होय. विकलेंडीनुं अंतर मुहूर्त अने मन रहित जीवनुं अंतर मुहूर्त. ग्रंथप्रसंगे ए अर्थ लख्यो. अह के० श्रथ एटले हवे नवनपति प्र. मुख चारे निकायना देवतानेविषे पत्तेयं के प्रत्येके विरहकाल कहीएं बिएं ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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