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________________ ចិច संग्रहणीसूत्र. काकाश चनद राज उंचपणे बे, तेनो विवरो कहे . अह के० अधोलोक ते रुचक प्रदेश थकी देठे जे पृथ्वी बे; तेहना सात नाग करीएं, ते एकेको जाग एकेक राजप्रमाण जे. एटले रत्नप्रजा पृथ्वीनो उपरनो तलो श्रादे देश्ने यावत् शर्करप्रजानो उपरनो तलो आवे; तेटलो एक राज वचमां घनोदधि, घनवात, तनुवात, अने अवकाश ते सर्व एक राजमांहे . एम साते नरके करी अधोलोके सात राजलोक थाय डे. तेमज रत्नप्रनाना उपरना तलानी उपरनी पीठिकाश्री मांडीने सौधर्मदेवलोकना उपरना तेरमा प्रतरसुधी एक राज लोक जाणवू. तेवारपनी मांहेजदेवलोकने बेडे, बीजो राज, तेवारपनी लंत के० लांतक देवलोकने डे त्रीजो राज. तेवार पनी सहसारे चोयो राज, अच्चुतने अंते पांचमो राज, प्रैवेयकने अंते को राज, अने बेहा लोगंते के लोकांते सातमो राज, ए रीते एकेका जागे करी सात राज लोक उ. पर जाणवा. ॥ १३४ ॥ अहीयां कोश्क-सोहम्ममिदिवढा ॥ अवाजायरामादिंदे ॥ पंचेवसहस्सारे ॥ अचुए सत्तलोगंते ॥१॥ ए गाथा कहे , ते मतांतर अप्रमाण जाणवी. केमके चउद पूर्वधर श्रीनप्रबाहुस्वामी श्रीयावश्यक सूत्रने विषे एहवीगाथा कहे . ते आगल पाठमांज लखी बे. सम्मत्त चरण सहिया ॥ सचं लोगं फुसे निरवसेसं ॥ सत्तय चन्दसनाए ॥पंचय सुय देस विरईए॥ १३५॥ अर्थ- सम्यक्चारित्र सहित जे केवली ते केवलीसमुद्घात अवस्थाए सर्व चउद राजलोक पोताना आत्मप्रदेशे करी फरशे.केमके धर्मास्तिकायना प्रदेश,अधर्मास्तिकायना प्रदेश अने लोकाकाशना प्रदेश, तथा एक जीवसंबंधी प्रदेश -ए चारे मांहोमांहे बराबर बे. तेमाटे जेवारे केवली केवलीसमुद्घात करे, तेवारे एकेका लोकाकाश प्रदेशे एकेको पोताना जीवनो प्रदेश थापे, तेवारे सर्वलाकने फरशे. वली सम्यक्चारित्र सहित उत्कृष्ट तपस्वी श्रुतझान सहित ते जेवारे अनुत्तर विमाने इसिकागतिए उपजे, तेवारे लोकना चौदीया सात राज फरशे. वली सम्यकदृष्टि श्रुत शानीए पूर्वेनरकायु बांध्यु होय, अने पडी सम्यक चारित्र पाम्यो होय, ते जीव बही नरकपृथ्वीए इलिकागतिए उपजे, तेवारे चौदीया पांच नाग फरशे. वली देशविरती इलिकागतिए अच्चुत देवलोके उपजे तेवारे चौदीया पांच लाग फरशे. नरकनुं जेणे पूर्वे आयु बांध्यु होय, ते देशविरतीपणुंन पामे.तेमाटे अधोलोकना चौदीया पांच नाग फरश आश्री विकल्प चिंतव्यो ते कारणे चूर्णिकार कहे जे जे, देशविर हेग, नऊववजाश्तेण पंचउवरिं अञ्चुयं जावतिजणियमिति एटले लोकना चौदनाग क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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