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वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन
६५५ दय गय नर किन्नर किंपुरिसा॥ कंठ नरग वृष सरिषारे॥ध॥ रयणपुंज वली फूल चंगेरी ॥ माल्य ने चूर्ण अनेरोरे॥ध॥२॥
अर्थः-दय के हयकंठ, गय के गजकंठ, किन्नरके किन्नरकंठ, किंपुरिसा के किंपुरसकंठ, उरग के० उरगकंत, अने वृषसरिषा के वृषनकंठ-इत्यादिक कंठ शब्द सघले जोमीए. सरिषाके सरखा- ए सर्व एकसो या कहेवा. रत्नना पुंज एकसो बात, वली फूलनी चंगेरीके० बाबडी, माल्यके० फूलमालानी चंगेरी. तेमज चूर्णके सुगंधी चूर्णनी, अनेरीके बीजी बाबडी. ए पण एकसो बात कहेवी.
गंध वस्त्र आनरण चंगेरी ॥ सरसव पुंजणीकरीरे ॥ध० ॥ एम पुष्पादिक पमल वखाण्यां॥आगे सिंहासन जाण्यारे॥धण॥२२॥
अर्थः-वली गंधनी चंगेरी, वस्त्रनी चंगेरी, बाजरणनी चंगेरी थने सरसवनी चंगेरी, वली पुंजणीकेरीके पुंजणीनी चंगेरी. ए सर्व एकसो बात जाणवा. एम पु प्पादिक के फूल प्रमुखना, पमल के वस्त्र, वखाण्यांके जीवानिगम प्रमुखने विषे वखास्यां ले. वली थागत सिंहासन जास्यांने, सिमांत वचने करीने. ॥१॥
बत्र ने चामर आगे समुग्गा ॥ तैल कुष्ट नृत जुग्गारे॥धा नरि या पत्र चोयग सुविलासे ॥ तगर एला शुचि वासेरे॥ध०॥२३॥
अर्थः-बत्र एकसो थात, चामर एकसो थात, वली पागल समुंग्गा के मा बडा. तैलनत के सुगंधी तेलना नख्या, कुष्टके० सुगंध वस्तुना नया. जुग्गा के योग्य. ए सर्व एकसो आठ बात जाणवा. वली माबडा, पत्रे करी नया ले. चोयगके सुगंध इव्ये नया ले. सुविलासवंत ले. तगरे करी नया वे. एला के. एलचीए नया. शुचिवास के०पवित्रवासे . इति त्रयोदश गाथार्थ ॥ १३ ॥
वलि हरताल ने मनसिल अंजन॥ सवि सुगंध मनरंजनरे॥धo ध्वजा एक शत आठ ए पूरां ॥ साधन सर्व सनूरांरे॥ध॥१४॥
अर्थ-वली हरतालना माबडा , मनसिलना माबडा ने घने जंजनना माबडा . सवि सुगंधके० सर्वे सुगंधिवंत ले. मनरंजन के मनने रीज उपजा वे एवा माबडा बे. ध्वजाके नाहानी ध्वजा , ए सर्व एकसो थाठ पूरां . | ए सर्व साधन बे. सनूरां के नूरसहित . ॥ इति चौदमी गाथार्थ ॥ १४ ॥
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