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________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडिनुं स्तवन. दृढ ले ते श्रावक कायनी हिंसानो हेतु जे जिनपूजा ते, धर्मवास्ते केम करे? इति प्रथम गाथार्थ. सुखदायकके हे सुखदायक, सुखना देणहार, तोरीयाणाके तमा री आझा ते, मुज सुप्रमाणके ० महारे प्रमाण जे. अथवा प्रचुजीनी स्तवना तो करेज ने माटे प्रनुजीने कहे जे जे सुखदाइ जे तमारी आझा ते, मारे प्रमाण ने. एटले ए नाव जे तमारी आज्ञा ते प्रमाण, पण कुयुक्ति करवी ते प्रमाण नथी. हवे उत्तर वाले . तेहने कहीए जतना नक्ति ॥ किरियामां नहीं दोष ॥ पडिकमणे मुनिदान विदारे ॥ नहींतो होय तस पोष ॥सु० ॥२॥ अर्थः- तेहने कहीए के जे पूजामां हिंसा बतावे जे तेहने कहीए, युं क हीए? ते कहे . जतना नक्ति के एक जतना, बीजी नक्ति, किरियामांकन जे क्रियामां होय एटले जे क्रियामां जतना तथा नक्ति होय; नहि दोष के ते क्रियामां दोष नथी. तथा कदाचित् तेहमां पण हिंसा कहीने दोष देखाडीए तो पडिकमणे के० पडिकमणामां, मुनिदान के मुनिने दान देतां, विहारे के मुनि ने विहार करतां, नहींतो के जतना नक्तिए पण करतां दोष कहीए तो; होय तस पोष के ० ते प्रतिक्रमण प्रमुखमां पण हिंसानी पुष्टि थाशे. एटले ए नाव जे, प्रतिक्रमण करतां उन बेस करतां वायुकाय हणाय, मुनि दानमां पण नन्ही बाफ नीकले. तथा दान देवा नठतां पण जीवघात थाय, वली मुनिने विहार क रतां पण पृथ्वी, पाणी वायु, वनस्पति वली त्रस बख्यिादिकनो पण घात थाय; ते माटे ए पण न करवा; एम कहे, पडशे. तेमाटेजतनानक्तिए क्रियामां दोष नथी. हवे ते उपर इष्टांत देखाडेले. सादमी वबल पस्किय पोसह ॥ नगवअंग प्रसिद॥ घर निर्वाद चरण लिए तेदनां ॥झातामांदे हरि कीध ॥सु ॥३॥ अर्थः-साहमी वचलके साधर्मिकनां वात्सल्य कस्वां, तथा परिकय पोसह के पारकीनो पोसो कस्यो ए अर्थे सूचव्यो. एहवो शंख पुष्कलीनो अधिकार न गव अंग प्रसिभके० श्री जगवतीसूत्रमा प्रसिमले तथाच तत्पातः॥तएणं से सं खे समणोवासए एवंवयासी तुम्हेणं देवाणुप्पिया विनलं असणं पाणं खाइमं सामं नवरकडावेह तएणं अम्हे विउलं असण पाण खाश्मसाइमं आसाएमाणा विसाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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