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वीरस्तुतिरूप दुंडीनुं स्तवन.
श्रावकने तो सातमा अंगमां बाणंदादिकने कांइए बताव्यो नही; तेवारे श्राविक, प डिकमणादिक कोण सूत्र उपर करे? तेमाटे ए नगुरांने उत्तर देवानुं ठेकाणुं नथी. इहां शिष्य पूज्यूं के हे स्वामिन् ,तेवारे श्रावक क्याथी करे ? तेहने करुणाए पानो जवाब कहेले. पढमअणुगथी के प्रथमानुयोग जे दृष्टिवादना चोथा नेदनो प्रथम नेद, तेहमां थकी प्रकरणमा पूर्वाचार्ये सर्व विधि कह्यो जे. रंगेके पर न पकारने रंगे कह्यो . यतः श्रीसमवायांगसूत्रे ॥ सेकिंतं अणुगो अणुगे ऽविहे पन्नते तंजहा, मूल ॥ पढमापुगेय गंमियाणुगेय ॥ इत्यादि. अर्थः-बारमा ह ष्टिवादना नेद पांचवे. एक परिकर्म, बीजो सूत्र, त्रीजो पूर्वानुगत, चोथो अनुयो ग, अने पांचमो चलिका-तेमां चोथो अनुयोग ते विहे पन्नते के० ते बे प्रकारे बे. तेमां मूल प्रथमानुयोगमा घणी वातो सूत्रकारे लखी बे, पण ते कहेतां ग्रंथ वधे माटे नथी कहेता. इति गाथार्थ ॥ २३ ॥
हवे कोश्क कहेशे जे प्रदेशी प्रमुखना अधिकारमा विशेष वात कां न कही? तेने उत्तर करे जे ए सिमांतनी शैलीजले; ते उपर गाथा कहे. किदां एक एक देशज ग्रदे॥किदां एक ग्रहे ते अशेषोरे॥किदां एक क्रम नतक्रम ग्रहे॥ए श्रुतशैली विशेषोरे ॥ शा० ॥ २४ ॥
अर्थः-किहां एक एक देशज ग्रहे के कोश्क स्थानके तो वस्तुनो देशज एक ग्रहे, जेम श्री जगवतीसूत्रमध्ये रथ मुसल संग्राम तथा महा शिलाकंटक संग्रा म कह्यो, तेम, किहां एक ग्रहे ते अशेषो के कोइक स्थानके समस्त ग्रहे, जेम निरयावलीमध्ये एहज संग्राम विस्तारे कह्या . किहां एक क्रम के कोक स्थानकनेविषे अनुक्रमे कहे. जेम पन्नवणा प्रमुखनेविषे धर्मास्तिकायादिक अनुक मे कह्या जे. उतक्रम ग्रहे के कोइक स्थानके पश्चानु पूर्वीए ग्रहे. जेम कल्पस
नेविषे वीरस्वामिथकी षनदेवजी लगे अधिकार कह्यो. ए श्रुतशैली विशेषो के ए सिहांतनी शैली विशेष. यतः॥ कबदेसग्गहणं कब धिप्पंतिनिरवसेसा ३ नक्कम वश्कमाइ सहाववस निरुत्ताई॥१॥ इति कल्पनाये सुगमा ॥ ए वातो नजरमा राखे तो सूत्रनो खरो अर्थ थाय. ते देश प्रमुख सूत्रे ग्रह्या होय ते संपूर्ण तो नियुक्ति टीका प्रमुखमां पामीए.इति गाथार्थ. ॥ २४ ॥ हवे उपसंहार करे.
शासननी जे प्रनावना ॥ते समकितनो आचारोरे ॥ श्री जि नपूजाए जे करे॥ते लदे सुजश नंमारोरे॥शा० ॥ २५ ॥
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