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________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. के एकशो आउ, विगुरुजुत्तेहिं के शुभयुक्त, अपुणरुत्तेहिके ० फरी फरीने तेह नो तेह पात न आवे. एवा महावित्तेहिं के महाकाव्ये, संथुण के स्तवना करे. करीने, पजाय सत्तह पयाइंके० पाबा सात आठ पगलां, पञ्चोसकरके ० पाडो उस रे. वामं जाणु अंचे के माबो ढींचण उचो राखे. दाहिणं जाए के जम यो ढींचण, धरणितलं सिसाहणं के० धरतीनेविषे थापे. तिरकुत्तौ मुखाणं धरणि तलं सिनिवेस के प्रणवार मस्तक धरतीए स्थापे. स्थापीने, एगसाडी उत्तर उत्तरासंग करेके एक साडी उत्तरासंग करे. करीने, जाव करयल परिग्गहियं द सनहं के हस्ततल परियहित दश नख, सिरसावत्तं के मस्तके यावर्तन करीने. मबए अंजलिं कट्ठ के मस्तके अंजली करीने, एवं वयासी के एम कहे. नमो खुणं कहे. एहनो अर्थ टीकाथी जाणवो. अहीयां कहेतां ग्रंथ वधी जायजे. इति. हवे ते ब बोल रायपसेगी मध्ये कह्याडे. तथाहि ॥ तएणंसेसूरियानेदेवे सम एस्स नगव महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचाणीस्स हह जावउठेत्ति उहित्ता समणं नगवं महावीरं वंद एमंस एवंवयासी अहम नंते सूरियानेदेवे किं नवसिदिए अनवसिदिए । सम्मदिहिए मिबादिहिए २ परित्तसंसारिए अणंत संसारिए ३ सुलह बोहिए उलहबोहिए ४ बाराहए विराहए ५ चरमे अचरमे ६ सूरियाना सम णे जगवं महावीरे सूरियानंदेवं एवंवयासी सरियाना तुमणं नवसिदिए, नो अ नवसिदिए जाव चरमे णो अचरमे ॥ अस्यार्थ ॥ तएणं से सूरियानेदेवेके० तेवा रे ते सूर्यानदेवता, समस्त नगवन महावीरस्त अंतीए के श्रमण जगवान महावीरने समीपे, धम्मं सोचानिसम्मके० धर्म सांजलीने, हह जाव नत्तिके ह र्ष पामीने यावत् नते. नतीने, समणं नगवं महावीरके श्रमण नगवान महावीर प्रत्ये वंदा नमंसश्के वंदना करे नमस्कार करे. एवं वयासी एम कहे. अहणं नंते सूरियानदेवेके हे जगवन् , हूँ सूर्यान नामे देवता, किं नवसिहिए अनवसि दिएके झुं नव्यर्छ ? किंवा अनव्यबु ? १ सम्मदिहोके० सम्यक्दृष्टि किंवा मिथ्या दृष्टिg ? २ परित्त संसारिए अणंत संसारिएके० परित्तमव्यो संसारी किंवा अपंतो संसारीनु ? ३ सुलहबोहिए कुलहबोहिएके सुलनबोधिद्धं एटले परनवे जिनधर्म प्राप्ति सोहली जेने एवोढुं के उतनबोधिद्धं ? ४ आराधक बु के विराधकबु. ५ चरमेके देवतानो नव बेनो के अचरमेके० घणानव करवाने ? सूरियानाइके सूर्यानने बोलावीने. श्रमण नगवान महावीर सूर्यानने एम कहे. सूर्याना तुम नवसिदिएके हे सूर्यान, तुं नवसिक्षिक, अनवसिदिक नथी. यावत् चरम , Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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