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________________ G३४ नववैराग्यशतक. के विज्ञाननेविषे, तहके तेमज, गुणेसुके दानप्रमुख गुणने विषे, कुसलतं के | चतुराई प्रत्येपण, के जेके जे जीवो सुहसचधम्मरयणेके नतासाचा धर्म रत्नने | विषे सुपरिरकं नयाणंतिके नली परीक्षाकरी नथीजाणता. एटले थारूडो धर्म ले के बीजो रूडो धर्म डे ? एवी परीक्षा नकरी जाणे. ॥ एए॥ था जिनधर्म, जव्य जीवोने अपूव कप्पपायवोके० अपूर्व कल्पवृक्ष बे. सग्ग के० स्वर्ग, अपवग्गके. मोद, तेहनां सुरकाणं के सुखरूप एवां फलाणंके फलने दाइ के देणहार जे. धम्मोबंधुसुमित्तोय, धम्मोयपरमोगुरु॥मुस्कमग्गे पयघाणं, धम्मो परम संदिगो ॥१०१॥ चनगणं तहानल पलित्त नवकाणणे मदानीमे ॥सेवसु रे जीवतुमं, जिणवयणं अमियकुंडसमं ॥१०॥ व्याख्या-ए धर्म बंधु के नाइने सुमिनो के नलो मित्र. एहज धर्म प रमोगुरु के० उत्कृष्ट सद्गुरुने, वली एहज धर्म मुरकमग्गपयहाणंकेमोक्ष मार्गने विषे जे चालनारा-तेने परमसंदिणोके० उत्कृष्टो रथले. ॥११॥ चारे गतिमाहे जे जन्म जरा मरणरूप अनंत कुख, तेहज अनल के महा अमि, तेणे करी पलित्तकेन्दग्ध थएलो एवो महानीमेजवकाणणेके महा नयंकर नवरूपी परस्यतेनेविषे घरे जीव, तुमकेतुं अमियकुमसमं जिणवयमंसेवसुके अमृत कुंम समान एवा श्रीजिनवचनने सेव. लायमां बलतां जलकुंममा पेस तेहज बचाव..॥१०५ विसमे नवमरुदेसे, अणंतउद गिम्मताव संतत्तो॥जिणधम्मकप्परु रकं सरसुतुमं जीव सिवसुददं ॥१०३॥किंबहुणा जिणधम्मे, जश्य वं जहनवोदहिंघोरं॥जदुतरिय मणंतसुहं लद जिन्सासयंगणं' व्याख्या-विसमे के० महाविषम एवा नवमरुदेसे के० संसाररूप निर्जल मरु देशनेविषे, त्यां जे धनंत कुःख तेहज जाणे गिम्मा के ग्रीष्म कालना तापनी लहेर, तेणे करी संतत्तो के घणो तप्यो थको जीवरहेडे त्यां जिणधम्मकप्परुरकंके जिनध मरूपी कल्पद ते केवू ? तोके सिवसुहदं के मोक्ष सुखनु देणहार. ते प्रत्ये, श्र रेजीव तुमं के तुं सरसुके दोडीने पहोच. ॥१३॥ किंबहुनाके घणुं शं कहे? जिराधम्मेजश्यत्वं के जिनधर्मनेविषे यत्न करवो. जहके जेम जिनधर्म सेवन क स्याथी नवोदहिंघोरं लदुयतरिय के जयंकर एवा संसार समुइने उतावले पार पामोए. अणंत सुहसासयंगणं के अनंतुं सुखडे जेनेविषे एवं शाश्वतु स्थानकजे मोक, तेहने जिलहरके जीव पामे. ॥१०॥ इति नववैराग्यशतकंसंपूर्णम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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