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________________ शोभनकृत जिनस्तुतिः 0 भूमि-तेने विषे सार के० प्रधान एवा हे वसुधासार! हे तीर्थनाथ के ० हे तीर्थं करदेव ! तव के० तने घासाद्यमाना के० प्राप्त थली, वाणी के पांतरीश गुणो एक विराजमान एवी धर्मोपलक्षण वाणी ते मे के० माहरा कदयने विषे खाहितानि के० स्थापन करेला एवा हितानिं के० मनोवांबितने क्रियात् के० क रो. ते वाणी केवीले ? तो के- नित्यं के० निरंतर - हेतू पपत्तिप्रतिहत कुमतप्रो ० तध्वबाधा - हेतु के० वस्तु स्थापन करनारा लिंग खने उपपत्ति के० युक्तिते करीने प्रतिहत के० निराकरण करचोबे, कुमत के कुत्सित पुरुषनो मतरूप प्रोत के० उत्कट एवो ध्वांत के० अंधकाररूप अर्थात् अज्ञानरूप ग्रंथी जेणे एवी, ने पापाया- अपके० गयोबे, अपायके० क्वेश जेथी एवी, यने सुधासा रहद्या - सुधा के अमृत, तेनी जे प्रासारके० वेगयुक्तवृष्टि, तेना सरखी हृद्यके० मनोहर ने, निर्वाणमार्गप्रणयपरिगता- निवार्ण मार्ग के० मोक्षमार्ग-तेने विषे जे प्रणयीके० स्नेहवाला एवा यती, ते ए परिगत के० अंगीकार करेली एवीले. रक्तप्रग्रहादिप्रतिदतिशमिनीवाहित श्वेतनास्व ॥ सन्ना 0 ७८४ सदाता परिकरमुदितासादमालानवंतं ॥ शुभ्राश्री शांतिदेवीजगतिजनयतात्कंठिकानातियस्याः ॥ सन्ना कासदाता परिकरमुदितासादमालानवंतं ॥ ४॥ ० व्याख्या - हे नव्यजन ! यस्यः के० जे श्रीशांतिदेवीना परिकरं के० हस्तने विषे भूषणत्वे करी उदिता के उदय पामेली ने प्राप्त के० प्राप्त यती एवी जे कुंमिका के० कर्ममल, ते सदा के० निरंतर, जाति के० शोजेबे, सा के० ते, श्री शांतिदेवी के श्रीशांतिदेवीनामे अधिष्ठायक देवी, जगति के० जगत्नेविषे, न तं के तुं जे तेने, दमालानवंतं - क्रमाके० उपशम, तेनोबे लानके० प्राप्ति जेने एवा अथवा दमा के० पृथ्वी, तेनोबे लान जेने, एवाने जनयतात् के ० १० उत्पन्न करो. ते शांतिदेव केवीले ? तो के, रक्तग्रहादिप्रतिशमिनि ! र के० राक्षस, कुड़ के माकिनी शाकिनी प्रमुख पुष्ट व्यंतरादिक खने ग्रहके० शनैश्वरादिक जे क्रूर ग्रह, तेथी जे प्रतिहति के० उपघात, तेनी शमिनी के० उपशम करनारी, खने वाहितश्वेत नास्वत्सन्नालीका - वाहित के० वाहन कसुंबे, श्वेत के छत्र, ना स्वत के० दैदीप्यमान एवं सत् के० उत्तम एवं नालीक के० कमल जेणे, एवी श्र ने सदाप्ता - सत् के० साधु, तेने प्राप्त के० मान्य एवी ने परिकरमुदिता के० O Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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