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सवासो गाथार्नु स्तवन. जो कपट कोइ दाखवे ॥ नवि तजं तोए तुज धर्मस्वामि॥१२॥ तुं मुज उदयगिरिमां वसे ॥ सिंह जो परम निरीहरे ॥ कुमतमातंग ना जुथथी ॥ तो कशी प्रनु मुज बीदरे ॥ स्वामि० ॥१३०॥ को डि दास प्रनु तादरे ॥ मादरे देव तुं एकरे ॥ कीजीए सार सेवकतणी ॥ ए तुज चित विवेकरे ॥ स्वामि ॥११॥ नक्ति नावे इस्युं नाखीए ॥ राखीए एह मनमांदीरे ॥ दासनां नवऊख वारिए॥ तारिए सो ग्रही बांहीरे ॥ स्वामि॥१२शा बाल जेम तात
आगल कहे ॥ विनवू ढुं तेम तूजरे ॥ नचित जाणो तेम आचरुं ॥ नवि रह्यो तुज किस्यु गुजरे॥स्वामि॥१३॥ मुज होजो चित्त शुन नावथी। नव नव ताहरी सेवरे ॥ याचिए कोडियतने करी ॥ एह तुज आगले देवरे ॥ स्वामि० ॥ १२४॥ कलश ॥ हरिगीत बंद ॥ इम सकलसुखकर उरितनयहर ॥ विमल लक्षण गुणधरो ॥ प्रनु अजर अमरनरिंदवंदित ॥ विनव्यो सीमंधरो ॥ निज नादत र्जित मेघगर्जित ॥धैर्यनिर्जित मंदरो ॥ श्रीनयविजय बुधचरण सेवक ॥ जशविजय बुध जय करो॥ १२५॥ ॥ ॥ ॥
इतिश्रीमन्महोपाध्याय गणि श्रीयशविजयकतश्री सी - मंधरजिन स्तवनं बालावबोधसहित संपूर्णःशुनं जवतु ।
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