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________________ ७५४ सवासो गाथानुं स्तवन. मुं स्वर्ग दाख्युं. एम दानादिक चारनुं पण तेहज फल कयुं. तेमाटे इव्यस्तव अणु व्रतादिक तुल्य गृहस्थधर्म जाणजो. काकण जिलायतले हिं मंमियं सयल मेइला वहं ॥ दालाई चक्के विहु विगठित सुपर गोयामा इत्यादि वचनात् ॥ ५ बांगे ौपदीजी ॥ जिनप्रतिमा पूजेय ॥ सूरियान परे नावथी जी ॥ एम जिनवीर कय ॥ शुणो० ॥ ए६ ॥ व्याख्या - बहे यंगेश्री ज्ञाताधर्म कथाए अवदात प्रसिद्ध बे, जे शैपदीए श्री जिनप्रतिमा सूर्यान देवतानी परे नावथी पूजी; एम श्रीवीरपरमेश्वर कहेबे, कोइ कहे जे दौपदी श्राविका नथी. ते उपर कहे बे. ॥ ९६ ॥ नारदव्ये नवि जी ॥ उनी तेह सुजाण ॥ ते कारण ते श्राविकाजी ॥ माषे पाल जाए ॥ शुणो० ॥ ॥ व्याख्या - नारद धाव्या तेहने असंयति जाणीने उनी न थइ एह दृढ धर्म पणाने गुणे शैपदी शुद्ध श्राविका बे. ए कारण माटे ते श्राविकाज जाणवी. अजाण बे ते घाल जाखे ले जे दौपदी श्राविका नथी. ॥ ७ ॥ जिनप्रतिमा आगल कह्योजी ॥ शक्रस्तव तेणे नार ॥ जाणे कु वि श्राविकाजी ॥ एह विध कदय विचार ॥ शुणो० ॥ ए८ ॥ व्याख्या - हवे ते नारी दौपदीए जिनप्रतिमानी धागल शक्रस्तव के० नमोबु पं नावस्तवनाए कह्यो; तो हवे श्राविकाविना एह जिनप्रतिमा पूजवानी विधि कोण जाणे? माटे कदमां विचारी जुन के जो ए मिथ्यादृष्टि होय तो नागा दिक प्रतिमा यागले दंभवत कररी पुत्रादिकनी याचना करे. ॥ ए८ ॥ पूजे जिनप्रतिमात्रतेजी | सूरियान सुरराय ॥ वांची पुस्त के रत्ननांजी ॥ लेइ धर्मव्यवसाय ॥ शुणो ॥ एए ॥ व्याख्या- सूर्यान सुरराज, जिनप्रतिमाने रत्ननां पुस्तक धर्मशास्त्ररूप बे ते वांची, धर्म व्यवसाय महीने पूजे. ॥ एए ॥ रायपसेणीसूत्रमांजी ॥ मोहोटो एह प्रबंध ॥ एह वचन मानतांजी ॥ करे करमनो बंध ॥ शुणो० ॥ १०० ॥ व्याख्या - रायपसेणीसूत्रमांहे एह मोहोटो प्रबंध कह्यो बे: एह वचन जे नथी मानता, ते देवताने ते नो धम्मिश्रा कहीने चीकणां कर्म बांधे बे. यत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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