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________________ ३०४ अध्यात्ममतपरीक्षा. जोश्ये, यतः “अंतराया दानलान, वीर्यनोगोपनोगगाः॥ दासोरत्यरती नीति, र्जु गुप्सा शोक एव च ॥ १ ॥ कामोमिथ्यात्वमझानं, निश चाविरतिस्तथा ॥ रागोदो पश्च नो दोषा, केषामष्टादशाप्यमी ॥२॥" ज्ञानगुणनो घात करनाऊं अज्ञान, दशेनगुणनो घात करनारी निज्ञ, सम्यक्तगुणनो घात करनारुं मिथ्यात्व, चारि त्रगुणनो घात करनारां हास्य, रति, अरति, जय शोक, उगंडा, काम, अविरति, राग, तथा देष ; अने दानादि लब्धिरूपवीर्यगुणना घात करनारा दानांतराय, लानांतराय, नोगांतराय, उपनोगांतराय, तथा वीर्यातराय; एअडारदोष घाति कर्मना कह्याने, परंतु केवलीने घातीकर्मोनो क्य थई जायजे, माटे ते निर्दोष क हेवाय. तेम बतां कुधा अने तृषाने अडारदोषोमा जे गणे ते युक्तायुक्त वि चार नकरतां केवल स्वमतनुं पोषण करेले;॥ ७२ ॥ ७३ ॥ अह ज जिणस्स खश्अंसकं मुकं विरुभए तेणं॥ तो सामरमानावे विसेसजुत्ता कहं सत्ता ॥ ४ ॥ व्या:- कोई आशंका करे के, जेम केवलीने दायिक झानादिक डे, तेम का यिक सुख पण जे, तिहां दुःखनोलेश पण नथी, तो तुधा तृषा केमलागे ? ॥७॥ तो वेयणिज्जकम्म उदयप्पत्तं कई दवे तस्स ॥ णय सोपदेसनदन समयम्मि विवाग नणणाd ॥ ५ ॥ व्या:- उपली आशंकानुं उत्तर दिये के, केवलीने जो दायक सुख मान ता होतो सिद्धांतनेविषे केवलीने वेदनीयकर्मनो उदय कह्योले, ते शासारु न मा नवो! अर्थात् मानवो जोशे. जेम ज्ञानावरणीयकर्मनो नदय बतां दायिक झान यतुं नथी, तेम वेदनीयकर्मनो उदय बतां दायिक सुख पण थतुं नथी, कोई शंका करेके, केवलीने एवा वेदनीयकर्मनो उदय होयले के, जेना प्रदेश आत्मप्रदेशनी साथे मलेले, ते स्थिति प्रमाणे रहीने कीण थई जायले. परंतु के वलीने तेनी आकुलता थती नथी. एर्नु उत्तर एके, यद्यपि एवो प्रदेशोदय अम ने पण मान्य जे; तो केवलीने दायिक सुख संनवे नही. तेम बतां अन्युञ्चयता थी अमारे कहेQ जोये के, केवलीने वेदनीयकर्मनो प्रदेशोदय बेज नही. किं तु सिद्धांतोमा विपाकोदय कह्यो. ॥ ७५॥ आवस्सयणिज्जत्ती पयडिपसबोदवएसेणं ॥ जा ता सुहायान असुदपडिवरकवयणेणं ॥७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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