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________________ काम नूली थाय. ते क्षमा करवा योग्य ने ढुंढिया यद्यपि जिनधर्मी नामधरावना रातो पण जाते मूर्ख होय बे तेथी तेज जिनोक्त मार्गनी विपरीत परूपणा कर तादरता नथी एवात सर्व सुइ जनाने सम्मत बे माटे ते मूर्ख होवाथी गोतार्थ कहेवा नही तेथी ए ग्रंथ अवश्य जैन सैलीथी विपरीतजबे एवं जाली त्याग करवा यो ; कोई सुविहित गीतार्थकृत जाणीने वांचवो नावो नही ए वात हुं श्री ना वनगरमा साधु श्री श्रात्मारामजी महाराजने मलवा गयो हतो त्यारे तेमणे मारी पाशे कही ए रतनचंद यानकवासी साधे यात्मारामजी महाराजनो मलाप थयलो तो इत्यादिक बहुवात मे एमना मुखथी सांजलीने तेथी में घणो पश्चात्ताप करचो प पती याय ? माटे मूलथी मारी प्रतिज्ञामां में नूल कीधी तेनी मुनि श्री श्रात्माराम जी महाराजना उपकार सहित सर्व सतनो पाशेथी क्षमापना मागुं बुं. शा. जीमसिंह मालक. विनती. समस्त जैन धर्म रागी, नाना ग्रंथ विचार बुजुत्सुक, जिनवचन पीयूषपान कर्त्ता, श र चित्तवाला जनाने प्रति प्रार्थना पूर्वक विनति करूं बुं के, जेम जननी अथवा जनक स्वपुत्रना दोषविषे रंचमात्र विचार न करतां मात्र गुणनुंज ग्रहण करेबे. तेम कित पुस्तकने विषे कोईने कांई दोष दृष्टिगोचर थाय तो मऊ ऊपर रंचमात्र रोष कर वो नही. केमके, सर्व प्रकारे निर्दोषता एक केवलीविना बीजा कोईने विषे पण संजवे नही. एटला माटेज पूर्वे थई गयला महत् श्राचार्य प्रमुख श्रुतज्ञान पारग श्रत्युत्रु ष्ठ पंकितो पण स्वरचित ग्रंथोमां बुद्धि दोषने विषे क्षमा मागी गयजा दीगमां धावेळे; त्यारे याधुनिक साधारण जननी वात शुं कहेवी ? या पुस्तकनुं शोधन करतां मति दोष अथवा दृष्टिदोष अवश्य दीठामां यावशे; ते जोईने रोष न करतां क्षमा करवी. केमके, वांचता अथवा लखतां नूल थायज ने एवो नियम बे. एविषे जे गर्व करे ते मूर्ख कहेवाय. माटे ए विषेढुं सर्वं सत्पुरुषोनो विनय करंतु के, छापनी हंसना चंचू जेवी तिथी सारासार विचार पूर्वक जलरूप दोष निवारण करीने पयरूप गुं ग्रहण कर. अने सत् पुरुषोनो पण अधिक विनय करुं हुं के, थापनी काकना चंचू जेवी मतिवडे गुण तजाने दोषनुं ग्रहण करीने ते सुखेथी प्रसिद्ध करवो; तेथी ढुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002166
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1876
Total Pages364
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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