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________________ श्री समयसारनाटक. ६४५ जे. वली ए सम्यग्ज्ञान साथे वैराग बलनो जोग बे, तेथी शुनाशुज क्रिया करता थका ने तेनुं फल नोगता थका शंखलाबंध नवां कर्मनो बंध थतो नथी. ॥ हवे सम्यक्त्वनी महिमामा क्रिया करतांज कर्मनी निर्जरा थाय ते दृष्टांते कहेजेः ॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसे नूप कौतुक सरूप करै नीच कर्म, कौतुकी कहावै तासों कौन कहै रंक है; जैसे विजचारिनी विचारै विनिचार वाको, जारदीसों प्रेम जरतासों चित्त वंक है; जैसे धाश् बालक चुंघाश करै लालि पालि, जानै तांहि और को जदपि वाके अंक है; तैसै ज्ञानवंत नानानांति करतूति गनै, किरियाको निन्न मानै यातें निकलंक है. ॥ १ ॥ __ पुनः- जैसै निशिवासर कमल रहै पंकहिमें, पंकज कहावै पै न याके ढिग पंक है; जैसे मंत्रवादी विषधरसों गहावै गात, मंत्रकी सकति वाके विना विषडंक है; जैसे जीन गहै चिकना रहै रूख अंग, पानी में कनक जैसै कांसो अटंक है; तैसै ज्ञान वंत नानाजांति करतूति गनै, किरियाको निन्न मानै याते निकलंक है. ॥ २॥ ___ अर्थः- जेम कोई नूप के राजा होय ने ते पोताना कौतुके करीने गमे तेवू नीच कर्म करे ते क्रिया करवाने लीधे ते कौतुकी कवाय पण कोई ते राजाने रंक नही कहे; जेम कोई कुलटा व्यभिचारिणी स्त्री होय ते यद्यपि पोताना धणीनी साथे रहे खरी, तोपण धणीनी साथे तेनुं चित्त बुब्ध होतुं नश्री; चित्तने विषे तो व्यनिचारनो ज विचार थाय, के जो वखत मले तो नीकली जालं ने यारने मढुं; जेम को धाव होय ने ते पारका बालकने धवरावे, अने रमाडे लालन पालन करे, अने अंक के पोताना खोलामां लश्ने बेसे, यद्यपि एवी क्रिया तो करे खरी, पण एम जाणे के श्रा बालक पारकुंडे; तेवीज रीते जे सम्यग् ज्ञानी डे ते नाना प्रकारनी शुनाशुन क्रिया राजा श्रेणिक तथा नरत चक्रवर्ति श्रने बीजा साधुनी माफक करे बे, पण ए क्रिया ने पुजलरूप जाणे, पोताना स्वरूपथ निन्न माने जे एथी बंधननुं कलंक लागतुं नथी. __एज उपर बीजा दृष्टांत कहे के जेम कमल ले ते रात्र दिवस पंक के कर्दमने विषे रहे , तेथकीज उत्पन्न थयुं बे, तेथी पंकज कहेवाय बे; तोपण कमलने पंकनो स्पर्श नथी होतो; जेम कोई गारूडी मंत्रवादी होय ते पोताना गात के शरीरने सर्प पासे पकमावे करमावे, पण ते मंत्रवादीना मंत्रनी शक्तिवडे सर्पनो डंख विषसंजोगर हित होय; जेम जिव्हा इंघिय घी दही प्रमुखनी चीकणाई ग्रहण करे, पण पो ताना अंगने ते चिकाशनो लेश रहेवा देती नथी, किंतु नूखीज रहेजे; जेम सोनुं पाणीनेविषे रेहेतां थका काटवाडं थतुं नथी, तेवी रीते ज्ञानवंत प्राणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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