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________________ श्री समयसारनाटक. ६४३ मुं कारण संवर ने श्रने निर्जरा जे लेते मोदनुं कारण बे. ए अनुक्रम प्रमाणे मोदनुं का रण परंपराथी नेद विज्ञानज बे. अगर जो शुद्ध स्वरूपनी अपेदाने लीधे नेदज्ञान त्याग जोग , तो पण नयोनु उपादेय, ते श्रादरवा जोग्य जाणिये. ॥ २॥ हवे स्वरूपनी प्राप्ति थया पली नेदशाननुं हेयपणुं देखाडेः-स्वरूप कथनः ॥दोहा॥-नेदज्ञान तबसों नलो, जवलों मुक्ति न होय: परम ज्योति परगट जहां, तहां विकल्प न कोय ॥७३॥ अर्थः- दशान त्यांसुधी नढुंबे, के ज्यांसुधी मुक्ति थई नथी. ज्यां परम ज्योति प्रग ट थाय त्यां विकल्प कोई रहे नही, तो नेदझान केम करीने रही शके ? ॥ ३ ॥ नेदज्ञान मुक्तिनो उपाय ते कहेजेः- श्रथ नेदज्ञानमहिमा कथनः॥ चोपाई॥- नेदज्ञान संवर जिन्दि पायो, सो चेतन शिवरूप कहायो; नेदज्ञान जिनके घट नाही, ते जमजीव बंधे घटमांही. ॥ ४ ॥ अर्थः-जे जीवने नेदज्ञानरूप संवरनी प्राप्ति थर, तेज चेतन शिवरूप कहियें; जेना हृदयनेविषे नेदशान नथी, ते मूर्ख घट पिंमने विषे बंधायलो रहे ॥४॥ हवे नेदविज्ञानवडे थात्मानो महिमा वधे ते कहेजेः-अथ नेदज्ञानको महात्म्यः ॥दोहराः॥-नेदज्ञान साब जयो, समरस निर्मल नीर; धोबी अंतर श्रातमा, धोवै नीज गुन चीर. ॥ ५ ॥ अर्थः- नेदज्ञान जे जे ते साबुरूप जाणवू; अने उपशम रस ते निर्मल पाणी लेने अंतर श्रात्माने धोबी मानवो; ते धोबी पोताना गुणरूप वस्त्रने धुवे ॥ ५ ॥ हवे नेदविज्ञाननी जे क्रिया डे ते कहेजेः-श्रथ नेदझानकी कर्त्तव्यता महात्म्यः-- ॥ सवैया इकतीसाः ॥-जैसै रजसोधा रज सोधिके दरब काढे, पावक कनक काढी दाहत उपलकों, पंकके गरजमे ज्यो मारिये कतक फल, नीर करे उज्वल नितारिडारे मलको; दधिको मथैया मथि काढे जैसै माखनको, राजहंस जैसै दूध पीव त्यागि ज लको; तैसै ज्ञानवंत नेदज्ञानकी सकति साधि, वेदे निज संपति उदे परदलको॥६॥ अर्थः- जेम को रज सोधा के जोनारो रजने सोधीने एटले सोना रूपा प्रमुख अव्यने काढवाने पावक के अग्निने लगाडे, ने सोनुं काढील पथरा धूल वगेरेने बाली नाखेडे. वली जेम कतकफलने पंकना गर्जनेविषे नाखीये तो ते फल जलने मे लथी जूठं करे, वली जेम दधिनो मथनहार दधिनुं मथन करी माखणने जूउं करेले ने राजहंस पाणी दूध नेगां होय तेमांथी मात्र दूध पी जाय, पाणीने जूठं करे बे; तेम ज्ञानवंत प्राणी नेद विज्ञाननी शक्ति साधीने पोतानी झानसंपत्तिने वेदे अने परदल के० पुजलनु कटक जे राग द्वेषादिक तेने कापी नाखेडे. ॥ ६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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