SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री समयसारनाटक. नाश पाम्यो, ते उपर दृष्टांत कहे के, जेम सूर्यनो उदय थवाथी अंधकार नासेडे, तेम नाश पामेडे; एवा विवेकवालो जीव जे जे ते कर्मनो कर्त्ता तो देखायडे पण शुद्धता जे पोतपोताना अव्यनी गुण परिणति तेनाप्रमाणथी जीवने कर्मनो अकर्ताज कह्यो.॥५॥ हवे जीव अने पुजलना लक्षणना नेद देखाडीने एज वात दृढ करेजेः अथ जीवपुजललवणनेदकथनःउप्पय बंदः॥-जीव ज्ञानगुनसहित, आपगुण परगुन ज्ञायक; श्रापा परगुन लखै, नांहि पुजल शहि लायक; जीवरूप चिप, सहज पुदगल अचेत जम; जीव अमूरति मूरतीक पुदगल अंतर वम; जबलग न होश् अनुनी प्रगट, तबलगु मिथ्यामति लसै; करतार जीव जड करमको, सुबुधि विकाशक जम नसै ॥६॥ अर्थः- जीवजे ले ते ज्ञानगुणसहित, अने जेम पोताना गुणनो ग्राहक ने ते मज पारका गुणनो पण ग्राहक बे. अने एज गुणना नेदे करीने पोताने तथा परने लखै के जुएजे; एवी कला शक्ति लायक पुजल क्यारे पण बनी शके नही. जीवन खरूप चिप के चेतनारूप , अने पुजलतो सेहेज नावे अचेतना रूप बे; एटले जम बे. वली जीव श्रमूर्ति डे अने पुजल मूर्ति बे, ए मोटुं अंतर ए बंने वच्चे. ज्यां सुधी शुद्धचेतननो अनुभव प्रगट न थाय. त्यांसुधी मिथ्यामति लसै के० दीप्ति वंत होयडे अने जडस्वरूपी कर्मनो कर्त्ता जीव , ते ब्रमबुधि बे; पण ए अनादि कालनो व्रम ते सुबुझिना विकाश थवाथी नाश पामे. ॥६॥ हवे कर्ता, कर्म अने क्रिया ए त्रणे स्वरूप कहे-अथ कर्त्ताकर्मक्रियास्वरूपकथन:॥दोहराः।- करता परिनामी दरब, करमरूप परिनाम; किरिया परजैकी फिरनि, वस्तु एक त्रय नाम.॥७॥ अर्थः-रूपांतरने जजे ते परिणामी कहेवाय, एबुं जे अव्य, ते कर्त्ता कहिये; रूपां तर थर्बु ते परिणाम, ऐने कर्मनुं स्वरूप कहियें; अने पर्याय, क्रमे क्रमे फरवू तेने क्रिया कहिये.ए रीते कर्ता, कर्मने, क्रिया एवांत्रण नाम बे पण वस्तु तो एकज .॥७॥ ___ हवे कर्ता, कर्म, ने क्रिया ते केहेवामां नाम निन्न जिन्न डे पण वस्तु एकज डे ते कहेजेः-श्रथ कर्त्ताकर्मक्रियैकत्वकथनः ॥दोहराः॥-कर्त्ता कर्म क्रिया करै, क्रिया कर्म करतार; नाउ नेद बहु विधि जयो, वस्तु एक निरधार ॥ ७॥ अर्थः- कर्ता त्यारे कहेवाय के ज्यारे क्रिया करे, अने क्रिया त्यारे कहेवाय के ज्यारे कर्म करे, एम नाम नेद जातजातनो पड्यो पण करवाथी कर्ता, करवायी कर्म ने करवाथी क्रिया ए त्रणे एकज वस्तु . ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy