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श्री समयसारनाटक.
उए? ती जरी जेवरी समान है; प्रगट जयो अनंत दंसन अनंत ज्ञान, वीरज अनंत सुख सत्ता समाधान है; जामे आज नाम गोत वेदनी प्रकृति ऐसी एक्यासी चोरासी वा पंचासी परवान है सो हे जिन केवली जगत वासी नगवान, ताकी जो अवस्था सो सजोग। गुन थान है. ॥ ७ ॥
अर्थः-श्रात्माना गुणना घातना करनार एवा दानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोह नीय, अंतराय, ए घाती कर्मनी चोकडी पुःख दाता हती ते जेनी विनाश थई गई, अने जे आत्माना गुणनो घात न करे एवा वेदनीय, श्रायु, नाम,अने गोत्र, ए चार अ घाति कर्मनी चोकमी रही ते बलेली दोरी समान रही . दर्शनावरणीय कर्मदय थयाथी ज्यां अनंत केवल दर्शन प्रगट थयु, अने ज्ञानावरणीय क्ष्य थयाथी ज्या केवल ज्ञान प्रगट्यु, अंतराय कर्म क्षय थयाथी अनंत वीर्य प्रगट्युं, मोहनीय कर्म क्षय थयात्री अनंत सुखसत्ता अने समाधि प्रगट्या अने जेमां श्रायु कर्म, ना मकर्म, गोत्रकर्म, वेदनीयकर्म, एचारनी सर्व (७५) प्रकृति रही बे. तेमां कोईने श्रा हारिक शरीर, श्राहारक अंगोपांग, थाहारक संघातन, श्राहारक बंधन, तथा जि ननामविना, (10) प्रकृती रही जे श्रने कोईने जिननाम सहित बे. तेथी (१) रही बे तथा काईने थाहारक चतुष्कडे अने जिननामनथी माटे (४) तथा को ईने जिननाम सहित (५) प्रकृतिनुं प्रमाण दे. एवी दशानो धरनार जे जे ते जिन होय केवली होय, जगत्नो नगवान् होय, तेनी जे अवस्था ने तेनेज सयोगी गुणस्थानक कहीए. ॥ ७ ॥
हवे सजोगी गुणस्थानकवालानी मुजा देखामे:॥ सवैया श्कतीसाः॥-जो अमोल परजंक मुखा धारी सरवथा अथवा सुकाउसग्ग मुजा थिरपाल हे खेत सपरस कर्मप्रकृतिके उदेश्राए, बिना डग जरे अंतरिक्ष जाकी चाल हे जाकी थिति पूरव करोडि श्रापवर्ष घाट, अंतरमुहुरति जघन्य जग जाल हे; सो हे देव अगरह पूषन रहित ताको बनारसी कहे मेरी वंदना त्रिकाल हे॥ए॥
अर्थः-जे अडोलपणे सर्वथा प्रकारे पर्यंक मुजा धारी होय एटले पद्मासनवालीने सदा सर्वदा बेसेडे, अथवा काउसग्गमुमा स्थिरपणे पाले ए वचन दिगंबर संप्रदायर्नु बे, अने क्षेत्र स्पर्श रूप जे कर्म प्रकृति ने तेनो उदय थयाथी केवली विहार करे पण बीजापुरुषनीपेठे चाले नहिं पण केवली डगबुं नस्याविनाज श्राकाशमां अधर चाले चाले. ए परूपणा दिगंबर संप्रदायनी जे. जे सयोगी गुण स्थाननी स्थिति आठ वर्षे न्यून पूर्वकोटी वर्षनी थाय केमके जन्मश्री आठ वर्षलगी केवलज्ञान उपजतुं नश्री, श्रने था गुनथानानी जघन्य स्थिति एक अंतरमुहूर्त्तनी थाय. जगत्जालमा ए
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