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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अर्थः- ज्यां जपशमिक श्रने क्षपक एवी बे शाखा वर्ते ले, जे गुण स्थानमा सूक्ष्म शिव पदवीनी अनिलाषा दे एवी ज्यां सूदम लोन दशा पामियें, ते सूक्ष्म संपराय कहीए. संपराय एवं कषायनुं नाम ॥ ॥ हवे अग्यारमुं उपशांत मोह नामे गुणथान कडंबुंः- अने तेनी प्रजुतानुं प्रमाण
कढुंबु. अथ एकादशम गुनथान वर्ननःचोपाई:- श्रब उपसंतमोह गुनथाना; कहों तासु प्रजुता परवाना; जहां मोह उ पसमे न जासे; जथाख्यात चारित परगासे ॥ ३ ॥ दोहराः-जाहि फरसके जीव गि रि, परै करै गुन रद्द; सो एकादसमी दसा, उपसमकी सरहद्द ॥ ४ ॥
अर्थः- जे गुणस्थानमां मोहनीय कर्म सर्वे उपशमी जाय, पण उदयमा नासे नही अने यथाख्यात चारित्रनो प्रकाश थईने जे निसंग आत्मानु सहज रूप ते प्रगटे ॥ ३३ ॥ जे उपशम श्रेणि चढिने जे गुणस्थानने फरसीने अवश्य जीव तिहाथी पडे अने जे गुण प्रगटे ते सर्व रद करे, ए अगीयारमी दशा थई, एटले उपशांत मोह गुणस्थानक थयु. एटले उपशमनी मर्यादा थई॥४॥ हवे बारमा क्षीणमोह गुनस्थाननुं वर्णन करूंढुं:-श्रथ छादश गुनथानक वननं:--
॥चोपाई॥-झान निकट जहां श्रावे; तहां जीव सब मोह षिपावे; प्रगटे यथा ख्यात परधाना; सोछादशम बीन गुन थाना ॥ ५ ॥
अर्थः-जे गुणस्थानने केवल ज्ञान निकट श्रावे , श्रने त्यां जीव सर्व मोहनीय कर्म खपावीने बीजा पण घाती कर्म सर्व खपावे, अने ज्यां प्रधान उत्कृष्ट यथा ख्यात चारित्र प्रगटे एवाप्रकारथी जे जे ते बारमुं दीण मोह गुणस्थानक कहीए ॥१६॥ हवे यांही लगण पाबला गथी मामी सात गुणस्थानमा उपशम श्रेणिनी श्रपेदाये जेकाल स्थिति देते कहेजेः-अथ षष्ट गुनथानक स्थितिकथन उपशम श्रेणिक अपेक्षाये
॥दोहराः ॥-षट सत्तम श्रम नवम; दश एकादश बार, अंतर मुहरत एक वा, एक समे थिति धार. ॥ १६ ॥ बीन मोह पूरन नयो, करि चूरन चित चाल; अब सजोग गुण थानकी, बरनों दसा रसाल. ॥ ७॥
अर्थः-ब्लु, सातमुं, आपमुं, नवमुं, दशमुं, अग्यारमुं, बारमुं, ए सात जे गुणस्थान बे, तेनी स्थिति एक अंतर मुहर्तनी . अथवा सात गुनस्थाननी जघन्य एक समयनी स्थिति धारो. ॥७६॥ मोहमय जे चित्तनी चाल हती तेनुं चूर्ण करीने दीण मोह गुण स्थानक पूरण थयु. हवे सजोगी गुन थानकनी रसाल दशानुं वर्णन करुंडं ॥ ७ ॥
हवे तेरमा गुणथाननुं वर्णन करुgः-अथ त्रयोदश गुन स्थानक वर्ननः॥ सवैया इकतीसाः॥-जाकी.फुःख दाता घाती चोकरी विनसगई, चोकरी श्रघा
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