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________________ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. . अर्थः- श्रग्यार संकट तो वेदनीय कर्मना उदययी उपजे . चारित्र मोहनीय कर्मथी सात बाधा नपजे . ज्ञानावरणनी करेली बे बाधा उपजे बे.अंतरायनी की धी एक बाधा उपजे. दर्शन मोहनीयनी करेली एक बाधा उपजे . सर्व मली बा वीस बाधा थइ. ते बावीसने परिषह कहीए. बाधामां कोई मननी बे, को वचननी बे,को कायानी बे; था बावीस बाधामांदेली कोश्ने अल्प एक बे उपजे; कोश्ने बहु उपजे, तो एकज समे ओगणीस बाधानो उदय थाय.तेमां असहायनी के जे बाधा बाधासाथेज बोलेले पण साथे बने नही त्यारे तेमा एकज बाधा एक समे थई ते थसहायनी कहीए. जेम चर्यापरिषद चालवाथी उपजे बे; निषेद्या परिषद रहेवाथी उपजेजे शय्या परिषह रहेवाथी उपजे . अने शितबाधा तथा ऊष्ण बाधामां एक समयमा एकज बाधा उपजे तेथी था पांच परिषहमा एक अथवा बे अथवा त्रण एक समयमां थाय, पण समुदायरूप पांचे न थाय ॥ ६ ॥ इति परिसह अधिकार समाप्त थयो॥ _ अर्थः-एवां नाना प्रकारना संकट तेनी दशा सहन करीने मुक्तिमार्ग साधे, तेथी थिविर कल्पना धरनार श्रने जिन कल्पना धरनार ए बेदु निग्रंथ समान ॥३॥ हवे थिवर कल्पमा अने जिनकल्पमा कं तफावत ते कहेजेः-- थथ स्थिविरकल्प जिनकल्प तारतम्य कथनः॥ दोहराः ॥-- जो मुनि संगतिमें रहे, थविरकल्प सो जानि; एकाकी जाकी दसा सो जिनकल्प बषानि ॥ ६४ ॥॥ चोपाईः ॥- थविर कलप मुनि कबुक सरागी;जिन कलपी महांत विरागी; इति प्रमत्त गुनथानक धरनी; पूरन नई जथारथ वरनी ॥६५॥ अर्थः- जे मुनीश्वर गछना गणनी संगतमां रहे, तेतो थिवर कल्पी जाणीए. जेने गणनी निश्रा नथी, जेनी एकाकी दशा ले तेतो जिनकल्पी कहिए ॥ ६४ ॥ ए बेउ निग्रंथमा थिवरकल्पनो धरनार कश्क सराग दशामां , अने जे जिनकल्पी डे ते महावैरागी . एटले प्रमत्त गुणगणानी जे नूमिका बांधी अने यथार्थ साचपणे वरणी ते पूर्ण थई ॥६५॥ हवे सातमा गुणस्थाननु वर्णन करे:-अथ सप्तम गुणथानक वर्ननं:॥ चोपाई:-॥ श्रव बरनो सत्तम विसरामा; अप्रमत्त गुनथानक नामा; जहां प्रमाद क्रिया विधि नासे; धर्मध्यान थिरता परगाषे ॥ ६६ ॥ दोहराः-प्रथम करनचारित्रको जासु अंत पद हो, जहाँ थाहार विहार नहि, श्रप्रमत्त हे सोई॥६७ ॥ अर्थः- मुक्तिरूप मंदिरमा चढतां ते सातमो विसामो , अने अप्रमत्त गुण स्था नक जेनुं नाम ते हवे वखाणे जे जे गुणस्थानमां धर्मरागादिकेकरी प्रमादनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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