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________________ श्री समयसारनाटक. उन्? अर्थः-पांच अणुव्रत, त्रण गुणव्रत अने सामायिक धारे १, पोसह धारे २, देशा वकासिक करे ३, अतिथि संविनाग करे ए चार शिदाव्रत धारे, ते व्रत प्रतिमा, जाणवी. तेनो काल वे महीनानो . ॥ ३३ ॥ हवे त्रीजी सामायिक प्रतिमानो विवरो कहेजेः-अथ तृतीय प्रतिमा यथाः ॥ दोहराः ॥-दर्वजाव विधि संजुगत, हिये प्रतिज्ञा टेक; तजि ममता समता गहे, अंतर मुहरत एक, ॥ ३४ ॥ चोपाई॥-जो अरिमित्र समान विचारे, भारत रूज कु ध्यान निवारैः संजमसहित नावना नावे; सो सामायकवंत कहावे. ॥ ३५ ॥ अर्थः-दश दोष वचनना टालवा, बार दोष कायाना टालवा, ए अव्यविधि अने दश दोष मनना टालवा ते नाव विधि जाणवो. तेणे करीने संयुक्त; अने हैयामां एक शो श्राप पंचपरमेष्टी मंत्रनुं स्मरण लागी रहे, एम बीजी पण कोई प्रतिज्ञानी टेक राखीने, ममता तजीने, समता ग्रहण करवी, एम एक अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत सामा यिक चारित्र थाय ॥ ३४॥ जे कोई शत्रु मित्रने समान विचारे, श्रात्तध्यान रौअध्या ननु निवारण करे, पंच संवर सहित थाय, बार नावना नावे, तेज सामायिकधारी श्रावक कहिए; ए त्रीजी प्रतिमा त्रण मासनी होय ॥ ३५॥ . हवे चोथी पोसह प्रतिमानो विवरो कहेजेः-श्रथ चतुर्थ प्रतिमा यथाः ॥ दोहराः ॥-सामायक कीसी दसा, चार पहर लो हो; अथवा श्राउ पहर रहे, पोसह प्रतिमा सो. ॥३६॥ अर्थः-जे पूर्वे सामायिकनी दशा कही तेवी दशा चार प्रहर लगी होय, श्र थवा तेवी दशा श्राउ प्रहर लगी रहे, तेज पोसह प्रतिमा धारी श्रावक कहीए. ए चार मासनी प्रतिमा जाणवी श्हां आठम, चउदश, अमास, पूनमने दहाडे तथा प दिन श्रावेथी पोसह करे ॥ ३६॥ हवे पांचमी सचित्त परिहार प्रतिमानो विवरो कहेजेः-श्रथ पंचमी प्रतिमायथाः ॥ दोहराः॥-जो सचित्त नोजन तजे, पीवे प्रासुक नीर; सो सचित्त त्यागी पुरुष, पंच प्रतिज्ञागीर ॥ ३७॥ अर्थः-जे सचित्त जोजननो त्याग करे श्रने फासु जल पीए, ए रीते जे पुरुष स चित्त वस्तुनो त्याग करे, ए पेहेलीप्रतिमाथी एटली वधती, क्रिया करे तेतो पांचमी प्रतिमानो धरनार जाणवो. ए प्रतिमा पांच मास सुधी रहे. ॥ ३७॥ ___ हवे गी ब्रह्मचर्यप्रतिमानो विवरो कहेजेः-श्रथ षष्टि प्रतिमा यथाः॥ चोपाईः ॥--जो दिन ब्रह्मचर्यव्रत पाले; तिथि श्राए निसि द्यौस संजाले; गहि नौवामी करै व्रत रदा; सो षट प्रतिमा साधक श्रदा ॥ ३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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