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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो.. __॥ सवैया इकतीसाः ॥-दंसन विशुधकारी बारह विरतधारी, सामायक चारी पर्व पोसह विधि वहे; सचित्तको परिहारी दिवा अफरस नारी, थागे जाम ब्रह्मचारी निरारंजी ठहै रहे पाप परिग्रह बंडे पापकी न शिक्षा मंमे, कोउ थाके निमित्त करे सो वस्त न गहे; एते देस व्रतके धरैया समकिती जीव, ग्यारह प्रतिमा तिन्हे नगवंतजी कहे ॥ ३० ॥
अर्थः-दर्शन विशुछिनी करनारी दर्शन प्रतिमा १, बारे व्रतनी धारनारी वि रति प्रतिमा २, ज्यां सामायिकनो उच्चार ते सामायिक प्रतिमा. ३, ज्यां पर्व श्राव्याथी पोसह करवो ते पोसहप्रतिमा ४, ज्यां सचित्त वस्तुनो परिहार करिये ते सचित्त परिहार प्रतिमा ५, ज्यां दिवसे स्त्री स्पर्श न करवो ते दिवस अस्पर्श प्रतिमा ६, थारे प्रहर ब्रह्मचर्यमा रहेQ ते ब्रह्मचर्य प्रतिमा ७, सर्व आरंजनो ज्यां त्याग करवो ते निरारंजी प्रतिमा ७, परिग्रहने त्यागवो ते परिग्रह त्याग प्रतिमा ए, ज्यां पापोपदेश न देवो ते पापोपदेश त्याग प्रतिमा १०, कोई आपणा निमित्त आहारादिक वस्तु करे ते ले नही ते उद्देशिक त्याग प्रतिमा ११, ए श्रगीयार प्रकारे करीने देश विरत धारी सम्यक्त्ति जीव कह्यावे. तेनी था ग्यार प्रतिमारूप प्रतिज्ञा नगवंतजी कहे जे ॥ ३० ॥
हवे ए प्रतिमानो अर्थ कदे:-अथ प्रतिमा कथनः ॥ दोहरा ॥ संयम अंस जग्यो जहां, नोग अरुचि परिनाम; उदे प्रतिज्ञाको जयो प्रतिमा ताको नामः ॥३१॥
अर्थः--जहां संयम चारित्रनो अंस जाग्यो अने जोग अरूचिना परिणाम थया, त्यां कोई प्रतिझानो उदय थयो तेनुं नाम प्रतिमा कहीए. ॥३१॥
हवे प्रथम दर्शन प्रतिमानुं विवरण करे:--अथ प्रथम प्रतिमा यथाः॥ दोहाः ॥- श्राप मूलगुण संग्रहे, कुवसन क्रिया न कोश्; दर्शन गुन निर्मल करे; दर्शन प्रतिमा सो ॥ ३ ॥
अर्थः-याही पेहेला कह्या बे करुणा वत्सल, सुजनता इत्यादिक सम्यक्त्वना आठ मूल गुण तेनो संग्रह करे, ज्यां साते व्यसननी क्रिया नथी एवासम्यक्त्व दर्शननागुण निर्मल करे, तेज दर्शन प्रतिमा कही. शहां व्रत नथी एनो काल एक मासनो ॥३२॥
हवे बीजी प्रतिमानो विवरो कहेजेः-अथ द्वितीय प्रतिमा यथाः॥दोहराः ॥-पंच अनुव्रत श्रादरे, तीन गुण व्रत पाल; सिदा व्रत च्यारों धरे, यह व्रत प्रतिमा चाल. ॥ ३३ ॥
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