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________________ ६ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. नंतानुबंधी लोज, पांचमी प्रकृति मिथ्यात्व मोहनीय, बवी प्रकृति मिश्र परिणाम एटले मिश्र मोहनीय, सातमी प्रकृति जे बे ते पहेली बए प्रकृतिनुं सम युं एटले दबाई गई ते सातमी सम्यक्त मोहनीय जाणवी, एमां घुरली व प्रकृतितो विंग वनितासी के० वाघणी जेवी बे. एनी गैल लागी तो कांई बूटती नथी, ने एक सातमी प्रकृति कुतियासी के०कुनार्या जेवी बे. तेनोपण जरोसो नथी. ए साते मोह नीयनी प्रकृति ते जीवनासद्जावनी रोकनार बे ॥ १४ ॥ दवे साते प्रकृतिथी सम्यक्त्वना नेद उपजे ते कहे बे:- अथ सम्यक्त्व नेद कथनः- ॥ बप्पय छंदः ॥ - सात प्रकृति उपसमहि, जासु सो उपसम मंमितः सात प्रकृति ar करन, दार बायकी श्रखंडित; सातमांहि कतु पिहि, कबुक उपसम करि रके; सोय उपसमवंत, मिश्र समकित रस चखे; षट प्रकृति उपशमश्वा पिप, थ वा बय उपशम करे; सातई प्रकृति जाके उदय, सो वेदक समकित धरे ॥ १५ ॥ अर्थ:-जेने ए सात प्रकृति उपसमी जाय तेतो उपसमी, पंक्ति के० ज्ञाता होय तेनुं नाम उपशम सम्यक्त्व कहीए; छाने जे ए साते प्रकृतिनो काय करनार होय तेने काकी कहीए, ते खंमित दायक सम्यक्त्व होय, वली ए साते प्रकृतिमां कई ख पावे, कई उपशमावी राखे,तेतो उपशम लक्षण सहित, तेमां मिश्ररूप सम्यक्त्व रसने चाखे, ए साते प्रकृतिमां व प्रकृति उपशमे श्रने सातमी सम्यक्त्व मोहनीय तो प्र कृति ऊदय यावी वेदे बे. अथवा ब प्रकृति दय थईबे ने सातमी वेदे बे. अथवा ब प्रकृतिमां कोई प्रकृतिनो दय थयो छे, छाने कोनो उपशम थयोबे, घने सातमी प्रकृति वेदे बे ते वेदक सम्यक्त्व धारी कहीए ॥ १५ ॥ वे सर्वे सम्यक्त्वना नव नेद कहे बे:- छाथ नवविधि सम्यक्त्व वर्ननं:॥ दोहराः ॥ -बय उपसम बरते त्रिविध, वेदक चार प्रकार; बायक उपशम जुग लयुत, नौधा समकित धार ॥ १६ ॥ अर्थः-दयोपशमसमकित त्रण प्रकारनुं वर्त्ते बे. वेदक सम्यक्त्वना चार प्रकारे बे, दायक सम्यक्त्वनो एक प्रकार बे ने उपशम सम्यक्त्वनो एक प्रकार, ए कायकने उपशम बेहुना मलवाथी सर्व मली नव प्रकारनो सम्यक्त्वधारी थाय ॥१६॥ हवे योपशम सम्यक्त्वना ऋण प्रकार कहे :- छाथ क्षयोपशम त्रयि यथा:-- ॥ दोहराः ॥ चारि षिप हि त्रय उपसमहि, पण पय उपसम दोश; षै षट उपसम क्षै एक यों, पय उपसम त्रिक होइ ॥ १७ ॥ अर्थः- साते प्रकृतिमां अनंतानुबंधीनी चोककी खपी गश्बे, अने ऋण दर्शन मोहनी उपसमी बे, तेने क्षयोपशम सम्यक्त्व कहिए. अथवा चार अनंतानुबंधी अने मि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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